पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ॐ भूगोलिक मान। ३९७ फिर पश्चिमकी ओर घूमकर पृथ्वी-प्रदक्षिणा कुल ही भ्रमपूर्ण है। जम्बूद्वीपका जो वर्णन करते हुए उत्तरकी ओर गये । तब उन्हें महाभारतकारने दिया है, वही प्रायः सब हिमालय नामक महागिरि मिला । उसके प्राचीन ग्रन्थोंमें देख पड़ता है। आगे उन्हें बालूका समुद्र दिखाई दिया। उसके आगे पर्वतश्रेष्ठ मेरु दिखाई देने लगा! जम्बूद्वीपके देश । मेरुपर्वतके सिर पर स्वर्ग था । स्वर्गके इस प्रकार यह स्पष्ट जान पड़ता है किनारे श्राकाश-गङ्गा बह रही थी, जहाँ कि जम्बूद्वीपके सात वर्ष अर्थात् सात खंड उन्हें इन्द्र मिला । उपर्युक्त वर्णनसे जान माने गये हैं: उनमेंसे भारतवर्ष, हैमवतवर्ष पड़ता है कि लोहित्यसागर अर्थात् रक्त- ' और हरिवर्ष वास्तविक दशाके प्रवकल का समुद्र और उदयागिरि पर्वत पूर्वकी हैं; और उनमेंसे कितने ही लोकोका ज्ञान अोर थे । अन्य समुद्रोंका वृत्तान्त ऊपर महाभारत-कालमें भारतीय पार्योंको था। दिया गया है । यह निश्चयपूर्वक जान हैमवत अथवा इलावर्ष में विशेषतः चीन, पड़ता है कि लवण समुद्र नैर्ऋत्य और तिब्बत, तुर्किस्तान, ईरान, ग्रीस, इटली पश्चिमसे मिला हुआ, दक्षिणकी ओर था। इत्यादि देश शामिल हैं। इन देशोंके लोगों पृथ्वीके पूर्वमें उदयाचल और पश्चिम- का बहुत कुछ ज्ञान महाभारतकालमें था। में अस्ताचल है। यह कल्पना प्राचीन- उत्तर ओरके लोग (म्लेच्छ) भीष्मपर्वमें कालसे है । ये पर्वत पश्चिम समुद्रके इस प्रकार बतलाये गये हैं:- आगे माने गये हैं । महाभारतमें यह ! यवनाश्चीनकाम्बोजादारुणा म्लेच्छजातयः। वर्णन है कि, मेरुपर्वत उत्तरकी ओर है, सकृद्रहाःपुलत्थाश्च हणाः पारसिकैःसह ॥ और उसके आसपास सूर्य और नक्षत्र; इस श्लोकमें यवन (युनानी ), चीन, घूमते हैं । श्राकाशकी ज्योतियोंका नायक काम्बोज (अफगान ), सदह, पुलस्थ, आदित्य इस मेरुके ही आसपास चक्कर हरण और पारसीक लोक बतलाये गये हैं। लगाया करता है। इसी प्रकार नक्षत्रों कितने ही इतिहासकारोंकी यह धारणा है सहित चन्द्रमा और वायु भी इमीको कि ईसवी सनके पूर्व लगभग २५० वर्षमें प्रदक्षिणा किया करते हैं (भीष्मपर्व १०६)।। भारती लोगोको शायद इन लोगोंका शान उस समय यह गूढ़ बात थी कि, जब सूर्य न होगा । परन्तु पूर्व ओर चीनतक और पूर्वको ओर उदय होकर पश्चिमकी ओर पश्चिम ओर ग्रीसतक भारतवर्ष के लोगों- अस्ताचलको जाता है, तब फिर वह उत्तर का हेलमेल बहुत प्राचीन कालसे था। दिशामें स्थित मेरुपर्वतके आसपास कैसे कमसे कम पर्शियन लोगोंका बादशाह घूमता है। कुछ लोगोंके मतानुसार सूर्य दारीयस भारतवर्षके कुछ भागमें आकर पश्चिमकी ओर अस्ताचलको जाने पर राज्य करता था । ग्रीक इतिहासकार फिर रातको उत्तर ओर जाकर और मेरु- हिरोडोटस ईसवी सन्के ४५० वर्ष पहले. की प्रदक्षिणा करके, फिर सुबह पूर्वकी के लगभग हुा । उसने यह वर्णन किया ओर उदयाचलके सिर पर प्राता है। परन्तु है कि, दारीयसकी फौजमें उसके अठा- यह कल्पना अन्य लोगोंको ठीक न जान रहों सूबोंकी सेना जमा होती थी। उसमें पड़ी:अतएव उन्होंने,और विशेषकररामा- ; यवन, शक, पारसीक, काम्बोज इत्यादि यणकारने, मेरुपर्वतको पश्चिमकी ओर बत- और भारतीय आर्योकी सेना रहती थी। लाया है। परन्तु उनको यह कल्पना बिल- इससे भी यही सिद्ध होता है कि भार.