पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४४६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४१८
महाभारतमीमांसा

४१४ ॐ महाभारतमीमांसा - गया। भिन्न भिन्न ग्रहोके नाम पर प्रत्येक के समय फल-ज्योतिषकी दृष्टिसे नक्षत्रों दिनके भिन्न भिन्न नाम रखे गये और का उपयोग अधिकतासे होता था। कहीं इस प्रकार वार उत्पन्न हो गये । महा- यात्राके लिए जाना, विवाह करना या भारतमें ये वार हैं ही नहीं । जानना युद्ध करना हो, तो नक्षत्र देखकर उचित बाहिए कि इन वारोकी उत्पत्ति आगे नक्षत्र पर करना पड़ता था। जिस नक्षत्र- चलकर कैसे हो गई । ये वार (दिन-नाम) में मनुष्यका जन्म हुआ हो उस नक्षत्रके पहलेपहल खाल्डियन लोगोमें उत्पन्न | अनुसार उस मनुष्यकी श्रायुमें सुख-दुःख हुए और वहाँसे संसार भर में फैल गये होनेकी कल्पना महाभारतके समय पूर्ण है। हिन्दुस्थानमें ये वार महाभारत- रूपसे चल चुकी थी। इसी कारण, जन्म- कालके अनन्तर बैक्ट्रियन यूनानियोंके कालका मक्षत्र देनेकी रीति महाभारतसे साथ उनके ज्योतिषियोंकी रीति समेत दृग्गोचर होती है । युधिष्ठिरका जन्म हमारे अर्वाचीन ज्योतिषशास्त्रमें प्रविष्ट जिस अच्छे नक्षत्रादि गुणों पर और हो गये। समय पर हुआ था उसका वर्णन यो __वैदिक कालमं प्रचलित छः दिनांके किया है। पृष्ठ्य नामक दण्डकका नाम महाभारत- ऐन्द्र चन्द्रसमारोह मुहतंऽभिजिवष्टमे । में नहीं पाया जाता । यह छः दिनका दिवोमध्यगते सूर्य तिथी पूर्णेति पूजिते ॥ खण्डक, यशके उपयांगके लिए, वेदिक इसमें कहा गया है कि चन्द्र-समारोह कालमें कल्पित किया गया था । ३१४ अर्थात् नक्षत्र ऐन्द्र है अर्थात् इन्द्र देवता- दिनोंका चान्द्र वर्ष, ३६० दिनीका सामान्य ' का है। इससे यह सूचित होता है कि वर्ष और ३६६ दिनोंका नाक्षत्र सौर वर्ष , जिस प्रकार इन्द्र सब देवताओंका राजा होता है। ये तीनों वर्ष वैदिक कालमै है, उसी प्रकार युधिष्ठिर भी सबका राजा माने गये थे और उनमें छः छः दिनोंका होगा । यह ज्येष्ठा नक्षत्र है । यद्यपि महा- अन्तर था । साधारण महीनेके ३० दिन भारतके समय नक्षत्रीका महत्त्व सबसे होते हैं। छः दिनका यह विभाग यक्षके श्रेष्ठ माना जाता था, और यह समझा काममें बहुत कुछ उपयोगी होता था। जाता था कि जन्म नक्षत्रके अनुसार ही यह छः दिनका पृष्ठ्य अर्थात् सप्ताह, मनुष्यकी सारी आयु बीतती है, तथापि महाभारतके समय, यक्षकी प्रबलता घट फल-ज्योतिषको निन्दा करनेवाले और जानेसे पीछे रह गया होगा। उस पर अविश्वास करनेवाले लोग तब ___ तिथि और नक्षत्रके कारण चान्द्रमास- की गणनामें, दिनका महत्त्व भिन्न भिन्न बहवः संप्रटश्यन्ते तुल्यनक्षत्रमंगलाः। होता था। जिस दिन जिस नक्षत्र पर महत्त फलवैषम्यं दृश्यते कर्मसंगिषु॥ चन्द्र हो,वही उस दिनका नक्षत्र है । महा- (वनपर्व) भारत-कालमें तिथिकी अपेक्षा नक्षत्रका फल-ज्योतिष पर अब भी यह प्राक्षेप महत्त्व अधिक था । २७ नक्षत्रोंके २७ किया जाता है कि यद्यपि बहुतसे लोग भिम भिन्न देवता माने गये थे। और उन एक ही नक्षत्र पर होते हैं। परन्तु उनके देवताओंके स्वभावके अनुसार, उस उस कर्मके अनुसार आयुप्यके फलमे अत्यन्त नक्षत्रसे गुण अथवा अवगुण होनेकी बात विषमता दिखाई देती है । यही आक्षेप मानी जाती थी। इस प्रकार, महाभारत- महाभारत-कालमें भी किया जाता था।