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महाभारतमीमांसा
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चौदहकाँधकरण । है कि संस्कृत भाषाका उपयोग लियाँ भी किया करती थी। संस्कृत भाषा। महाभारत-कालके पूर्व अर्थात् यूना- साहित्य और शास्त्र। नियोंके आक्रमणसे पहले, हिन्दुस्तानमें निम्न श्रेणीके लोगोंमें संस्कृत भाषा नबोली संसारकी प्रत्येक भाषा, किसी समय, जाती थी। इस भाषाका प्रचार विद्वान् ' बोलचाल की भाषा रही होगी- ब्राह्मण और विद्वान् क्षत्रिय आदि उप इससे कोई इन्कार नहीं कर सकता: जातिवालों में ही था। यदि ऐसा न होता और इस सिद्धान्तके अनुसार यह निर्वि- तो बुद्धने अपने नवीन धर्मका उपदेश वाद है कि एक समय संस्कृत भाषा भी लोगोंको मागधी भाषामें न किया होता। बोली जाती थी। इसमें कोई सन्देह नहीं अनार्य असंस्कृत लोगोंके कारण संस्कृत कि भारती-कालके प्रारम्भमें, भारतीय भाषाका अपभ्रंश हो जानेसे भिन्न भिन्न मार्य लोग संस्कृत भाषा बोलते थे और प्रान्तोंमें तरह तरहकी प्राकृत भाषाएँ यह भी ठीक है कि व्यासजीका मूल ग्रन्थ, उत्पन्न हो गई थी। अनार्य लोगोको प्रत्यक्ष बोलचालमें आनेवाली भाषामें संस्कृत भाषाका कठिन उच्चारण पाना लिखा गया था । महाभारत-कालमें सम्भव न था। इसी प्रकार संस्कृत भाषा- संस्कृत-भाषा बोलचालकी भाषा थी या के कठिन रुप और अपवाद वैश्यों और नहीं, यह महत्त्वका प्रश्न है । भगवद्गीता-शद्रोंके भाषणमें नष्ट हो गये और सरल के सदृश जो भाग निःसन्देह पुराने भारत- तथा सादे रूपोंका प्रचार होने लगा था । अन्धके हैं, उनकी भाषा सरल और ज़ोर- सारांश यह कि सरल उच्चारण और सादे दार है, उस भाषामें किसी प्रकारके रूपोंके कारण प्राकृत भाषाएँ उठ खड़ी बन्धन नहीं हैं, और वह लम्बे एवं दुर्बोध हुई थीं। इसके सिवा, अनार्योकी म्लेच्छ समासोसे भो रहित है। अतः हमारे मन भाषाएँ भी इधर उधर बोली जाती थीं: पर परिणाम होता है कि वह प्रत्यक्ष सो उनके शब्द भी मंस्कृत भाषामें घुसते बोलनेवालोकी भाषा है। समृचे महा- रहते थे। भारतकी भाषा भी बोलचालकी भाषाकी नार्या म्लेच्छन्ति भाषाभिः तरह जंचती है। भारती-कालमें संस्कृत मायया न चरन्त्युत। भाषा बोली जाती थी। पावकी स्त्रियों . (प्रादिपर्व) के भाषणमे ग्राम्य भाषाके कुछ निन्द्य भेद इस वचनसे यह अर्थ निकलता है थे। उन भेदोंके जो उदाहरण कर्णने दिये ! कि आर्य लोग म्लेच्छ शब्दोंका व्यवहार हैं, उनसे उपर्युक्त अनुमान निकलता है। नहीं करते। परन्तु टीकाकारने म्लेच्छ प्राहुरन्योन्यसूक्तानि प्रत्रुवाणा मदोत्कटाः। शब्दका अर्थ भूल करना लिखा है, सो हे हते हे हते त्वेवं स्वामि-भर्तृ-हतेति च ॥ वह भी ठीक है। अनार्य अथवा म्लेच्छ (कर्णपर्व ४४)। लोग संस्कृत बोलने में भूले करतेथे अथवा संस्कृत भाषामें 'हे हते, हे हते' ये यह भी सम्भव है कि अनार्य लोग संस्कृत- गालियाँ हैं, इनका उपयोग स्त्रियों के मुँह- का कठिन उच्चारण मनमाना-कुछका से हुआ करता था। इससे देख पड़ता कुछ-करते हो: और इससे यह प्रयोग