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महाभारतमीमांसा
  • महाभारतमीमांसा *

भाषाको ही अपने ग्रन्थमें स्थिर रखा। प्राचीन गर्भ था और इन्हींके अवतार क्योंकि भारती आर्योंके सनातन धर्म-ग्रन्थ व्यासजी महाभारत (शां०अ० ३४१ ) में वेद, वेदाङ्ग आदि संस्कृतमें ही थे, और कहे गये हैं। यह प्रकट है कि वेदोंकी बौद्ध धर्मसे विरोध होनेके कारण सौतिने व्यवस्था करनेवाले अपान्तरतमा पुराने संस्कृतका अभिमान किया। इस प्रकार, ऋषि रहे होंगे। शौनकने ऋग्वेदकी सर्वा- महाभारतके समय यद्यपि प्राकृत भाषाएँ : नुक्रमणिका बनाई है। यह निश्चयपूर्वक उत्पन्न हो गई थी, तथापि महाभारतमें नहीं कहा जा सकता कि ये शौनकजी संस्कृतका ही उपयोग किया गया है। व्यासदेवसे पहलेके हैं या पीछेके । तथापि यही नहीं, बल्कि उस समय विद्वानोंकी ऋग्वेदके सम्बन्धमें शौनकका विशेष महत्त्व भाषा संस्कृत ही थी और बौद्ध साहित्य है, क्योंकि उन्होंने नियम बना दिया है कि अभी अस्तित्वमें ही न पाया था। अर्थात् ऋग्वेदके मन्त्रोका कहाँ पर और कैसा महाभारत-कालमें भिन्न भिन्न शास्त्रों पर उपयोग करना चाहिए । अनुशासन पर्व- जो साहित्य था वह संस्कृतमें ही था। के ३० वें अध्यायमें शौनककी वंशावली अब देखना है कि वह साहित्य क्या था। है । इस अध्यायमें यह कथा है कि पहले वीतहव्य नामक एक क्षत्रिय था जो भृगु वैदिक साहित्य। ऋषिके सिर्फ वचनसे हो ब्रह्मर्षि बन पहले वैदिक साहित्यका ही विचार गया। इस राजाका गृत्समद नामक पुत्र करना चाहिए । महाभारतके समय था। ऋग्वेदके प्रथम मन्त्रका ऋषि यही वैदिक साहित्य करीब करीब सम्पूर्ण है। इसका पुत्र सुचेता, और सुचेताका तैयार हो गया था। सब वेदोंकी संहिताएँ पुत्र वर्चस हुआ जिसके वंशमें करु उपजा । तैयार हो गई थी और उनके ब्राह्मण भी शुनक इसी झरुके पुत्र हैं और शुनकके तैयार हो चुके थे। अनुशासन पर्वके इस । पुत्र हैं शौनक । परम्पग यह है कि सौति- वाक्यमें* स्पष्ट कहा है कि ऋग्वेदमें दस ने इन्हीं शौनकजीको महाभारत सुनाया हजार ऋचाएँ हैं- था। यदि ये शौनकजी महाभारत-कालके दशेदं ऋक्सहस्राणि निर्मथ्यामृतमद्धतम। अर्थात् मन ईसवीसे लगभग ३०० वर्ष (शान्तिपर्व अ० २४६) पहलेके माने जायँ तो माना जा सकता है महाभारतमें लिखा है कि वेदोंकी कि पूर्वोक्त शौनकके वंशमें ये दूसरे शौनक रचना अपान्तरतमा ऋषिने की है और रहे होंगे। अथवा यह मेल मिलाया गया यह बात तो महाभारतके प्रारम्भमें ही होगा कि, जिस तरह भारतके प्रणेता कह दी गई है कि वेदोंके विभिन्न भाग व्यास ही वेदोकी व्यवस्था करनेवाले हैं, स्वयं महाभारत-कर्ता व्यासजीने किये हैं- वैसे ही महाभारतके प्रथम श्रोता शौनक विव्यास वेदान्यम्मान्सः वेदव्यास भी वेदोकी सर्वानुक्रमणिकाके रचयिता हैं। इत्युच्यते। वेद तीन है और कहीं कहीं चौथे अपान्तरतमा ऋषिका अन्य नाम अथर्व वेदका भी उल्लेख है। प्रत्येक वेद- • टीकाकारने कहा है कि वास्तवमै ऋचाएं कुछ - का ब्राह्मण भाग अलग है। अनशासन अधिक है। पर्वमें कहा गया है कि तण्डि ऋषिने ऋचां दशसहस्राणि ऋचां पञ्चशतानि च। यजुर्वेदका ताण्ड्य महाव्राह्मण शिवजीके ऋचामशीतिः पादश्चैतत्पारायणमुच्यते !! प्रसादसे बनाया है। यह भी लिखा है कि