पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४७२

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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा उक अनुमानसे यह बात निश्चयपूर्वक अशुभभौरियोंका भी वर्णन था। जरासन्ध- नहीं कही जा सकती कि स्मृतियाँ थीं ही की कथामें कुश्तीके दांव-पेंचोंके नाम नहीं। वैदिक साहित्यके अतिरिक्त शेष आये हैं । इसी प्रकार थकावट न मालूम प्रामाणिक ग्रन्थ ही स्मृति हैं, यह अर्थ | होनेकी प्रोषधि और उपाय वर्णित हैं। श्रुति शब्दके विरोधसे महाभारत-कालके वैद्यशास्त्र में कषाय और घृतोका उल्लेख हैं। अनन्तर उत्पन्न हुआ होगा। क्योंकि बाद- ते पिबन्तः कषायांश्च सीषि विवि- रायणके ब्रह्मसूत्रोंमें 'स्मृतेश्च', 'इति च धानिच । दृश्यन्ते जरया भग्ना नया स्मर्यते' इत्यादि प्रयोगोंमें महाभारतका नागैरिवोत्तमैः॥ ही आधार लिया गया है। (शान्ति० ३३२) आकाशके भिन्न भिन्न वायुओका भी अन्य शास्त्र और उल्लेख। वर्णन है । अनुशासन पर्वमें बतलाया है आन पड़ता है कि नीतिशास्त्रका कि भिन्न भिन्न प्रकारके गन्ध (धूप) किस वर्णन करनेवाला एक शंबर था । दो ! भाँति तैयार किये जाते हैं । यह श्लोक तीन स्थानों पर उसका नाम आया है। ध्यान देने योग्य है- नातः पापीयसीकाञ्चिदवस्थां शंबरो- तलवदृश्यते व्योम खद्योतो हव्यवाडिव । ऽब्रवीत् । यत्र नैवाद्य न प्रातर्भोजनं न चैवास्ति तलोव्योनि खद्योतेव हुतावहः॥ प्रतिदृश्यते ॥ २२॥ । महाभारतमें एक स्थान पर स्मृति- (उ० अ० ७२) शास्त्रका भी उल्लेख देख पड़ता है। अनु. महामारतम संख्यावाचक पन शब्द शासन पर्व (अ० १४१-६५) के उमा- कई बार पाया है। । महेश्वर-संवादमें- तस्थौ पद्मानि षट्चैव पञ्च चैव मानद ॥ वेदोक्तः प्रथमो धर्मः स्मृतिशास्त्रगतोऽपरः। (शान्ति० अ० २५८, १६) शिष्टाचीर्णोपरः प्रोक्तस्त्रयोधर्मःसनातनाः।। ___ सभापर्वमें संख्याक वे सभीशब्द आये जो स्मृतिशास्त्र कहा है वह धर्म- हैं जिनका आजकल चलन है। यहाँ शास्त्र, मानवादि और बौद्धायन प्रादिके पर वे उद्धृत करने योग्य हैं। उद्देशसे है। आपस्तम्बधर्मशास्त्र आदि धर्म- अयुतं प्रयुतं चैव शंकुं पनं तथार्बुदम् । शास्त्रके छोटे ग्रन्थ महाभारतके पहले थे। खवं शंखं निखवं च महापचंच कोटयः॥ परन्तु महाभारतमें और किसीका नहीं, मध्मं चैव पराधं च सपरं चात्र पण्यताम् ॥ केवल मनुका नाम मिलता है। मनुके (स० अ० ६५-४) वचनके कुछ दृष्टान्त भी पाये जाते हैं । इससे प्रकट है कि महाभारत-कालमें परन्तु मनुस्मृतिका अथवा अन्य स्मृति- गणितशास्त्रमें अङ्कगणितकी बहुत कुछ योका नाम महाभारतमें नहीं आया, यह उन्नति हो गई थी। यह परम्परा सत्य पहले लिखा ही गया है। यह बात सन्दि- देख पड़ती है कि अङ्कगणितशाल भारती ग्ध है कि इस वचनको लेकर ही स्मृति में पार्योका है और वह यहींसे सर्वत्र फैला धर्मकी व्याख्या की गई है, अथवा इसकी है। ऐसा वर्णन है कि गणितशास्त्रमें पेड़ों व्याख्या किसी और स्थानसे ली गई है; के पत्ते और फलतक गणितके द्वारा गिन यह संघाद बड़ा मजेदार है और इसमें लेनेकी कला ऋतुपर्णको ज्ञात थी। समस्त धर्म संक्षेपमें बतलाया गया है। शालिहोत्रमें घोडोंके बदन परकी शुभ- (अ० १३६-१४८ )