पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४७३

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  • साहित्य और शास्त्र । *

४४५ - विद्या जंभकवार्तिकः ब्राह्मणैः।। अध्ययनके जो विषय अथवा शास्त्र यह उल्लेख उद्योग पर्व में है और समूचे महाभारत-कालमें प्रसिद्ध थे, वे पीतक-माक्षिक (सुवर्णमाक्षिक) का भी ऊपरकी भाँति हैं। ये विषय वेद, धर्म- उल्लेख है। (६४ वें अध्यायमें) ऐसा जान शास्त्र, तत्त्वज्ञान, राजनीति, व्याकरण, पड़ता है कि जंभक यानी कुछ रसायन- गायन, भाषाशास्त्र अथवा निरुक्त और क्रिपा उस समय मालुम रही होगी। युद्ध, कृषि, वैद्यक, गणित, ज्योतिष अन्यत्र कहा ही गया है कि धातम्रोकी और शिल्पशास्त्र थे। इनमेंसे कई एक जानकारी थी ही। विषय बिलकुल पूर्ण हो चुके थे। अर्थात् सभापर्वके ११ व अध्यायमें यह तत्वज्ञान, व्याकरण और राजनीति आदि विषय इतनी पूर्णता पर पहुंच गये थे श्लोक है- कि उससे अधिक वृद्धि हिन्दुस्थानों में उस भाष्याणि तर्कयुक्तानि देहवन्ति समयके पश्चात् नहीं हुई । काव्य अथवा विशाम्पते । नाटका विविधाः काव्यक- ललित-वाङ्गमय उस वक्त निर्माण न हुआ थाख्यायिककारिकाः ॥ था। महाभारतमें नाटकोंका उल्लेख है। तर्कयुक्त भाष्य देह धारण किये प्रजा-मारक करनेवाले ब्राह्मणोंका. और नटके पतिकी सभामै रहते हैं। इसी प्रकार स्त्री-वेश धारण करनेका भी उल्लेख नाटक. काव्य. कथाएँ श्राख्यायिकाएँ है। किन्त किसी ग्रन्थ अथवा ग्रन्थ और कारिकाएँ भी रहती हैं । इस वर्णन-कारका उल्लेख नहीं है । महाभारतके से प्रकट है कि आधुनिक साहित्यके पश्चात् इसका भी प्राप्त वाङ्गमय उत्पन्न बहुतेरे भेद महाभारतमें प्रसिद्ध थे। ये हुश्रा और कुछ शतकोंमें उसे ऊर्जिता- ग्रन्थ किसके थे, इसका उल्लेख नहीं है। । वस्था प्रान हुई । महाभारत और रामा- इसका पता नहीं कि भाप्य 'किन विषयो : यण. इन आर्ष काव्योंसे ही उसका पर थे। ये भाष्य छोटे होंगे। क्योंकि यह प्रारम्भ हुआ। भारती कालमें तत्त्वज्ञान- नहीं कहा जा सकता कि उस समय पत-: का जो पूर्ण विचार हुआ था, उसीका अलिका भाष्य था । पतञ्जलि-कृत भाष्य-निष्कर्ष पडदर्शनोने अपने विशेष सूत्रोंके का नाम 'महाभाप्य' है । यहाँ भारत और द्वारा किया । ये सूत्र अत्यन्त पूर्ण और महाभारत जैसा ही भेद देख पड़ता है। सबोरसे विचार करके संक्षेपमे कहे महाभाष्यका नाम कहीं नहीं आया। गये हैं. इस कारण सबको मान्य हो गये प्रजापतिकी सभामें सदेह ग्रन्थ तो रहते ही हैं। अतएव, तत्त्वज्ञानकी दृष्टिसे, भगव- थे, परन्तु सभामें कहीं ग्रन्थकारोके विद्या-दीताके सिवा, महाभारत कुछ पीछे रह मान होनेका वर्णन नहीं है । ग्रन्थ पूज्य गया है। तो भी महाभारतमें तत्त्वज्ञानकी हो तो यह आवश्यक नहीं कि ग्रन्थकार चर्चा बहुत है। भी पूज्य हो, किंबहुना अनेक बार नहीं

  • अगले लोकसे शान होगा कि भारती प्रायोकी

भी रहते । निदान महाभारत-कालमें 1 कल्पना और तर्कशक्ति कितनी विशाल थी। "सदमयो- भाष्य, नाटक, काव्य और पाख्यायिका ननिभतानि तर्कगम्यानिकानिचित् । पक्ष्मणोपि निपा. इत्यादिके पूज्य ग्रन्थकार उत्पन्न नहीं । तेन येषा रयात्कंध पर्ययः ॥ (शा० अ० १५-२६) यहाँ हुए थे, यही मानना पड़ता है। श्राजकलक "बै मिला" यानी सक्ष्म जन्तुश्रीका उल्लेख है।