पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/४८५

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- - - और दहीका, यक्ष-राक्षसोंके लिए मांस अध्ययन और इज्याके सम्बन्ध विस्तृत और मद्यका, नथा भूतोंके लिए गुड़ और विचार हो चुका है। अब दाम पर विचार तिलका बलि देना पड़ता था। आजकल करना है। महाभारतके समय धर्मशाला वैश्वदेवमें ब्राह्मण लोग जो बलि-हरण की इस बात पर कड़ी दृष्टि थी कि प्रत्येक करते हैं वह इसीकी एकत्र की हुई एक दिन प्रत्येक मनुष्यको कुछ न कुछ दान विधि है। परन्तु प्राचीन समयमें यह अवश्य करना चाहिए । अनुशासन पर्वमें विधि विस्तृत थी और प्रत्येक घरमें. भिन्न भिन्न दानोका पुण्य-फल विस्तारके अपने घरके भिन्न भिन्न भागों में एवं घरके साथ वर्णित है। विशेषतया सुवर्ण, गाय; समीपवाले रास्तेमें जाकर बलि देने पड़ते तिल और अन्न-दानोंकी स्तुतिसे अतु. थे। महाभारतमें ऐसा ही वर्णन है। शासन पर्वके अध्यायके अध्याय भरे पड़े मृच्छकटिकमें चारुदत्त, घरके भिन्न भिन्न हैं। प्रत्येक दानकी स्तुतिका अन्य दानों- भागोंमें बलि देनेके लिए जाता है और की अपेक्षा अधिक किया जाना साहजिक रास्तेमे तथा अन्य स्थानोंमें जलते हुए ही है । तथापि गोदामकी स्तुति बहुत ही दीपक रखता है-इस बातकी उपपत्ति अधिक की गई है। क्या महाभारतके ऊपरवाले वर्णनसे पाठकोंकी समझमें समय और क्या इस समय, गाय सदा श्रा जायगी। इस जमानेमें आलोक-दान एकसी उपयोगी देख पड़ती है। परन्तु और दीप-दान प्रायः बन्द हो गया है। आजकल गायको पालना बहुत कठिन परन्तु चारुदत्तके समय और महाभारत- हो जानेके कारण गायका देना और लेना के समय यह विधि प्रत्येक गृहस्थके यहाँ भी बहुत कुछ कम हो गया है। और, प्रति दिन होती थी। किंबहुना, यह विधि गोप्रदानकी कीमत सिर्फ सवा रुपया किये बिना भोजन करना अधर्म माना: मुकर्रर है; इसलिए, अब प्रत्यक्ष गोदान जाना था। करनेके झगड़ेमें लोग बहुत कम पड़ते हैं। दान। परन्तु महाभारत कालमें गाय रखना बहुत सरल काम था। इसके अतिरिक्त, गायें . 'इज्याध्ययनदानानि तपः' ये जो अत्यधिक पवित्र मानी जाती थीं । धार्मिक आचरणके चार भाग है, इनमे गायको मारना या उसको पैरसे छूना पातक समझा जाता था। गायके गोबर

  • ऐसा प्रतीत होता है कि वैश्वदेवकी रीति महा-

भारत कालमें बहुत कुछ वैसी ही थी जैसी कि अाजकल और मूत्रमे भी अधिक आरोग्य-शक्ति है, है। अनुशासन पर्वके २७३ मध्यायमें उसका वर्णन | इससे वह पवित्र माना जाता था। यही वैश्वीव नामसे ही है। उमी देवताके उदेशमे अनिमें | महाभारत-कालीन धारणा थी। भाहुति देना, परके भिन्न भिन्न भागोंमें बलिहरण करना ! शकृन्मत्रे निवम त्वं पुगयमेतद्धि नःशुभे। और दरवाजे पर (अनुशासन पर्व २) ____श्वभ्यश्च श्व१वेभ्यश्च वयोभ्यश्चावपेदभवि। इससे गायका दान प्राचीन समयमें कुत्ते भादिको बलि देना बतलाया गया है। यह अत्यन्त प्रशस्त माना जाता था। गजात्रो वैश्वदेव सायं प्रातः दोनो ममय और नित्य गृहस्थोके द्वारा और यश-कर्ताओंने जो हजारों गायोके किया जाय । इस समय अतिथिको भोजन देनेके लिए भी कहा गया है। सार यह कि उस समय भिन्न भिन्न भागोंमें "दान किये थे उसकी प्रशंसाका वर्णन बलि देनेकी विधि ही अधिक थी और शेष वैश्वदेव-विपि, उपनिषदोमें भी है। दुर्भाग्यसे इस समय भाजलकी भाँति ही थी। भरतखण्डमें गायोंके सम्बन्धमें हमारा