पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
३६
महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा * समान वह सूत कातने नहीं बैठतो, अर्थात् “तुम्हारी बुद्धि धर्माचरण किन्तु ऐसे धैर्यके काम करती है जो पर स्थिर रहे; और तुम्हारे मन सङ्कचित राजपूत स्त्रियोंके योग्य हैं । कौरवोंकी न होकर विशाल हो।" यदि समस्त महा- सभामें धुतके प्रसङ्गमें जब उस पर सङ्कट | भारतका तात्पर्य किसी एक श्लोकार्धमें पा पड़ा था, उस समय उसके मनका कहा जाय तो वह यही है। .. धैर्व विककुल नहीं डिगा । उसने द्रौपदी, कुन्ती, गान्धारी, सुभद्रा, सभासे ऐसा प्रश्न किया कि सब सभा- रुक्मिणी श्रादि महाभारतमें वर्णित स्त्रियाँ सदोंको चुप हो जाना पड़ा। अन्तमें | उदात्त चरित्रकी हैं और उनमें मनुष्य- अपने पत्तियोंको दासत्वसे मुक्त करके स्वभावकी झलक भी महाकवि व्यासने वह उनके साथ अानन्दसे अरण्यवासके दिखा दी है। उदाहरणार्थ, सुभद्राके लिये चली गई । कुन्तीका पात्र भी ऐसा विवाहके समय द्रौपदीने अपना मत्सर- ही. उदात्त है। पाण्डवोंका अरण्यवास भाव एक सुन्दर वाक्यसे अर्जुन पर प्रकट पूरा हो जाने पर, जब श्रीकृष्ण विदुरके कर दिया- घर कुन्तीसे मिलने आये, उस समय तत्रैव गच्छ कौन्तेय यत्रसासात्वतात्मजा। उसने उनके हाथ अपने पुत्रोंको जो सुबद्धस्यापि भारस्य पूर्वबंधः श्लथायते ॥ सँदेसा भिजवाया था वह क्षत्रिय-स्त्रियोंके (आदि० अ० २२१ १७) लिये उचित ही था। विदुला-संवाद-रूपयह अर्थात्-"किसी गढेका पहला बंधन सँदेसा अत्यन्त उद्दीपक है। इस सँदेसे- कितना ही मज़बून क्यों न हो, पर जब में उसने पाण्डवोको यह तीखा उपदेश वह दूसरी बार बाँधा जाता है तब उसका दिया है कि क्षत्रिय-पुत्र या तो जीतकर पहला बन्धन कुछ न कुछ ढीला हो ही श्रावे या मर जायँ, पर भिक्षा कभी न | जाता है।" कर्णके सम्बन्धमें कुन्तीका माँगें। यह उपदेश उसने स्वयं अपने पुत्र-प्रेम युद्धके बाद भी प्रकट हुआ है। लाभके खिये नहीं दिया था: क्योंकि उत्तराने बृहन्नड़ासे कहा है कि रणभूमि- पाण्डवोंके राज्य पाने पर वह उनके यहाँ से अच्छे अच्छे वस्त्र मेरी गुड़ियोंके लिये बहुत दिनोंतक नहीं रही. किन्तु धृत- अवश्य ले श्राश्रो । ऐसे और भी अनेक राष्ट्र के साथ तपश्चर्या करनेके हेतु वनमें उदाहरण दिये जा सकते है। चली गई। जब भीमने कुन्तीसे पूछा कि- महाभारतमें वर्णित समस्त व्यक्ति "तूने ही तो हमें लड़ाई के लिये उद्युक्त उदात्त स्वरूपके है । इतना ही नहीं, किन्तु किया था और अब तू हमारे ऐश्वर्यका उसमें कहीं कहीं जिन देवताओंका वर्णन उपभोग न कर वनमें क्यों जाती है ?" किया गया है उनके चरित्र भी उदात्त हैं। तब उसने उत्तर दिया कि,-"मैंने अपने इस सम्बन्धमें होमरके इलियडकी अपेक्षा पतिके समय राज्यके ऐश्वर्यका बहुत उप- महाभारतकी कुशलता कहीं अधिक है। भोग किया है। मैंने तुम्हें जो सँदेसा इलियडमें वर्णित यूनानी देवताओंका भेजा था वह कुछ अपने लाभके लिये बर्ताव मनुष्योंसे भी बुरा है। वे परस्पर नहीं, किन्तु तुम्हारे ही हितके लिये " लड़ाई-झगड़ा मचाते और मारकाट भी पाण्डवोंके प्रति उसका अन्तिम उपदेश करते हैं। उनका देवता-स्वरूप प्रायः नष्ट तोसोनेके अक्षरोंसे लिख रखने योग्य है- सा जान पड़ता है। महाभारतमें देव- धमें वो धीयतां बुद्धिर्मनो को महदस्तु च। नाका जो वर्णन है वह ऐसा नहीं है।