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महाभारतमीमांसा

ॐ महाभारतमीमांसा संत्रवेत्ताओने अपनी विद्या एकत्र की और है कि शङ्कर बालकृष्ण दीक्षितका बतलाया राश्यंशादि-घटित प्रह-गणितका प्रारम्भ हुश्रा ४५० वर्षका समय इससे भी दूरका किया। प्राचीन पंचसिद्धान्त यहीं बनाये है परन्तु उसे घटाकर ईसवी सन्के पहले मये होंगे। वे सब राश्यंश-घटित गणितके २०० वर्ष मानने में कोई हर्ज नहीं, क्योंकि आधार पर रचे गये हैं । इसके बादके वह पूर्व-मर्यादा है। अतएव सिद्ध है कि ब्रह्मसिद्धान्त, आर्यसिद्धान्त और सूर्य उसके इस पार यह समय हो सकता है सिद्धान्त भी इन्हींके आधार पर बनाये और उस पार किसी दशामें नहीं जा गये हैं। सारांश, यूनानी ज्योतिषकी सहा- सकता। ऐतिहासिक प्रमाणोंके आधार यतासे उज्जैनमें आधुनिक आर्य ज्योतिषकी पर राशि, अंश आदिके प्रचलित होनेके रचना की गई है। इसी लिये सब भारतीय इस ओरके इस निश्चित समय पर यदि ज्योतिषकार उज्जैनके रेखांशको शून्य ध्यान दिया जाय, तो मालूम होगा कि रेखांश मानते हैं। जिस प्रकार अंग्रेज महाभारत इस समयके पहलेका है. ज्योतिषी प्रीनिचके रेखांशको शन्य मानते क्योंकि उसमें गशियोका उल्लेख नहीं है। हैं उसी प्रकार आर्य ज्योतिषी उज्जैनके इस दृष्टिसे विचार करने पर पहले बत- रेखांशको शून्य मानते हैं। वहाँ राजा- लाया हुश्रा हमारा समय अर्थात् ईसवी श्रयके अधीन एक प्राचीन वेधशाला भी सन्के पहले २५० वर्ष हो प्रायः निश्चित थी और वहीं वर्तमान आर्य ज्योतिषकी सा हो जाता है। जब कि मेगास्थिनीजके नींव डाली गई। ज्योतिष शास्त्रका यह ग्रन्थमें महाभारतका उल्लेख नहीं है, तब अभ्यास कुछ एक दो वर्षका ही न होगा, पहला अनुमान यह है कि वह प्रन्थ क्योंकि उसे जो नया स्वरूप प्राप्त हुआ है ईसवी सन्के पहले ३०० वर्षके इस ओर- वह केवल ग्रीक लोगोंके अनुकरणसे ही का होगा। दूसरी बात यह है कि ग्रीक प्राप्त नहीं हुआ है । उसका विकास लोगोंकी शूरताका वर्णन महाभारतम स्वतन्त्र रीति और स्वतन्त्र पद्धतिसे हुआ पाया जाता है। इससे भी यही निश्चय है। उसमें ग्रहगणित एक प्रधान अंग : होता है कि उसका समय सिकन्दरकी अवश्य है। परन्तु युगादिकी कल्पना और चढ़ाई के बादका होना चाहिये, अर्थात् गणित प्रीक लोगोंसे बिलकुल भिन्न है। ईसवी सन्के पहले ३०० वर्षके इधरका उसमें कल्पके प्रारम्भका निश्चय करते। होना चाहिये। अब तीसराप्रमाण लीजिये: समय अनेक प्रकारका गणित तैयार करना राशि प्रादिके प्रचलित होनेका जो समय पड़ा है। सारांश यह है कि हिन्दुस्थानमें ईसघी सन्के पहले दो सौ वर्ष है, वह पजाबसे लेकर मालवेतक सौ दो सौ इससे भी अधिक समीपका अर्थात् इस वर्ष ज्योतिषशास्त्रका अभ्यास होता रहा पोरका हो सकता है सही: परन्तु वह होगा और उजैनमें राजाश्रयसे उसका समय सौ वर्षसे अधिक इस ओर घसीटा अन्तिम स्वरूप निश्चित तथा स्थिर हो नहीं जा सकता। स्वयं शङ्कर बालकृष्ण गया होगा। दीक्षितका कथन है कि वे प्राचीन इस प्रकार इतिहासकी दृष्टिसे मालूम सिद्धान्त-ग्रन्थ, जिनमें राशि आदिका होता है कि हिन्दुस्थानमें राश्यंशादि गणित है, ईसवी सनसे पहले सौ वर्षसे गणितका प्रचार ईसवी, सन्के लगभग अधिक इस ओरके नहीं हो सकते । ऐसी २०० वर्ष पहले हुना है। यह बात सचदशामें बहुत हो तो, महाभारतके कालकी