पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/८८

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महाभारतमीमांसा

है। महोपनिषद्का अर्थ संदिग्ध देख शुक्रने नीति-शास्त्रका कथन किया, गार्यको पड़ता है; क्योंकि द्रोण पर्वमें भूरिश्रवाके देवर्षिका चरित्र मालूम हुआ, इत्यादि । सम्बन्धमे कहा गया है कि-'ध्यायन्महो- यद्यपि आयुर्वेदके सम्बन्धमें विशेष उल्लेख पनिषद् योगयुक्तोऽभवन्मुनिः' और वहाँ नहीं है तथापि पित्त, श्लेष्मा और वायुका यह नहीं जान पड़ता कि किसी ग्रन्थका स्पष्ट उल्लेख है । भारतीय आयुर्वेदका उल्लेख होगा, किन्तु साधारण तौर पर यह मुख्य सिद्धान्त बहुत प्राचीन है उपनिषद् शब्दसे ग्रन्थका उल्लेख होकर (शांति० अ० ३४३) सभापर्वके थे और उसमें तत्वज्ञानका बोध होता है । यह ११ वें अध्यायमें कहा गया है कि आयुर्वेद बड़ी निराशाजनक बात है कि महाभारत- के आट भाग हैं । वन पर्व और विराट में किसी उपनिषद्का नाम नहीं दिया पर्वमें शालिहोत्रका भी उल्लेख है । प्रकट गया है। महाभारतके पहले अनेक उप-: है कि यह अश्व-चिकित्सका शास्त्र है। निषद् विद्यमान थे और उसके बाद भी इसके कर्ताका उल्लेख कहीं नहीं है। कई उपनिषद् बने हैं। दशोपनिषदोंका धनुर्वेदका उल्लेख बहुत है। कहा गया है भी उल्लेख महाभारतमें नहीं है । अन्य कि यह चार प्रकारका है और इसके दस प्रमाणोसे यद्यपि निश्चयपूर्वक कहा जा भाग हैं। कञ्चिदाख्यानसे प्रकट है कि इस सकता है कि दशोपनिषद् महाभारत- विषय पर सूत्र भी थे। क्षत्रियोंका वर्णन के पहलेके हैं, तथापि यही बात अन्य करते समय 'धनुर्वेदे च वेदे च निष्णातः' उपनिषदोंके सम्बन्धमें नहीं कही जा बार बार कहा जाता है; इससे मालूम होता सकती। उदाहरणार्थ, श्वेताश्वतर दसके है कि क्षत्रिय इन दोनों विषयोका अभ्यास बाहरका उपनिषद् है। उसके समयका किया करते थे। श्रादि पर्वके १३६ वें अंध्याय- निर्णय करने के लिये साधन प्राप्त हो गया में वर्णन है कि क्षत्रिय वेदोंसे भी धनुर्वेदमें होता । इस उपनिषद्के कुछ वचन महा- अधिक प्रवीण होते हैं । इस समय भारतमें पाये जाते हैं: परन्तु इस उपनिषद् धनुर्वेदका एक भी ग्रन्थ उपलब्ध नहीं मेंहीये वचन किसी अन्य स्थानसे लिये है। परन्त उक्त सब वर्णन काल्पनिक भी हुए जान पड़ते हैं। नहीं है। महाभारतकालमें दस-शखाओं- अब हम उपवेदों और वेदांगोंके का धनुर्वेद नामक ग्रन्थ अवश्य होगा विषयमें कुछ विचार करेंगे। उपवेद तीन और सम्भव है कि उसमें अस्त्रोका हैं-आयुर्वेद, धनुर्वेद और गान्धर्ववेद । भी वर्णन हो । गान्धर्व वेदका वर्णन वन इनका उल्लेख महाभारतमें पाया जाता है। पर्वके श्वे अध्यायमें है। उसमें गीत, चौथा उपवेद स्थापत्यके नामसे प्रसिद्ध नृत्य,वादित्र (गाना,नाचना और खजाना) है। इसका भिन्न उल्लेख आदि पर्वमें- और सात भेद मुख्य विषय हैं । नटसूत्रका मास्तु-विद्याके नामसे किया गया है। इन जो उल्लेख पणिनिमें है वह इसमें नहीं उपवेदों से आयुर्वेदके कर्ता कृष्णात्रेय, है। गान्धर्व वेदमें नाटकोंका अभिनय नहीं अनुर्वेदके कर्ता भरद्वाज और गान्धर्ववेदके होगा । गानके सप्त भेदोका उल्लेख सभा- कर्ता नारद बतलाये गये हैं (शांति० अ० पर्धके ११ अध्यायमें है। मृदंगके तीन २) । इन्हींके साथ और भी कुछ शब्दों और गायनके सात सुरोका भी कर्वाचओका उल्लेख है; जैसे कहा गया है। उल्लेख है। कि बृहस्पतिको वेदांयका शान हुआ। यह बात प्रसिद्ध है कि वेदाग ६ हैं।