पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१०२

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जापान की जीत का कारण - लोगों का ख़याल है कि जापान की उनन्ति का आरम्भ हुए केवल 40 वर्ष हुए । परन्तु जापान के भूतपूर्व मन्त्री कौण्ट ओक्यूमा इस बात को नहीं स्वीकार करते । वे कहते हैं कि जापान की सभ्यता 1500 वर्ष की पुरानी है। 1500 वर्ष पहले जापान ने चीन, कोरिया और हिन्दुस्तान से सभ्यता सीखी। पर उस सभ्यता को जापान ने अपने अनुकूल बना लिया। अर्थात् जिस रूप में उसने पाया उस रूप में उसे न रखकर अपने देश की अवस्था के अनुसार उसने उसमें फेरफार कर दिया। धर्म, साहित्य, नीति और कलाकौशल आदि सब विषयों में जापान ने इस तरह के फेरफार किये। जब जापान में विदेशियों ने पैर रक्खा तब उसने उन्हें वैसा करने से मना किया। पर इसमें वह असमर्थ हुआ। तब इस असमर्थता का वह कारण ढूंढ़ने लगा ! उमके ध्यान में आया कि विदेशियों को बलपूर्वक निकालना कठिन है । यदि दो एक दफ़े वे निकाल भी दिये जायंगे तो न मानगे। वे पिर से आगे । अतएव जिन बातो में ये लोग हमसे बढ़े हुए हैं उन्हें हमैं सीखना चाहिए। उनके समान श्रेष्ठ होने ही में जापान का कल्याण है। यह निश्चय करके जापान ने जातिभेद को उठा दिया। सामाजिक दृष्टि से किमान और प्रधान मन्त्री एक हो गये । सब जापानी एक सामाजिक सूत्र मे बँध गये । परस्पर शादी विवाह होने लगे। पहले ने समझते थे कि जो कुछ जापानी है वह मभी श्रेष्ठ है, और जो कुछ विदेशी है वह सभी बुरा है । इम अविचार को उन्होंने दूर कर दिया । उनको इस बात पर दृढ़ विश्वास हो गया कि पुरानी अभ्यता का अब समय नही रहा । इसका फल यह हुआ कि छोटे छोटे तअल्लुकेदारों ने अपनी अपनी तअल्लुकेदारी को राजा के सिपुर्द करके गजा की शक्ति बढा दी। हर वर्ष हजारों विद्यार्थी विदेश में विद्योपार्जन के लिए जाने लगे। 6 वर्ष की उमर होने पर लड़के लड़कियों के मदरसे जाने का कानून बन गया। विदेश से जैसे जैसे जापानी युवक विद्योपार्जन करके लौटने लगे तैसे ही तैसे जापान में विदेशी रीति की सभ्यता का प्रचार प्रारम्भ हुआ। जापानी लोग रेल, तार, डाक, कल, कारखाने, स्कूल, कालेज, वाणिज्य आदि सब बातों के पीछे पड़ गये और यथाशक्ति उनमें उन्नति भी करने लगे । जहाज़ चलाना और बनाना भी उन्होंने सीखा । पश्चिमी रीति के अनुसार सेना भी उन्होंने अपनी दुम्स्त कर ली। जब तक सब बातें सिखलाने के लिए योग्य जापानी नहीं मिले तब तक विदेशियों से काम लिया गया। पर जब विद्वान् जापानियों की संख्या बढ़ गई तव विदेशी दूर कर दिये गये। जापान ने प्रतिज्ञा कर ली कि विदेशियों में जो जाति सबसे अच्छी दशा में है उसकी बराबरी किये बिना हम न रहेंगे । इस प्रतिज्ञा को उसने तीम चालीस वर्ष में पूरी कर दिखाया। पर विदेशियों की नक़ल करने में जापान ने अपना जापानीपन नहीं छोड़ा।