पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/११६

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112 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली प्रकृत विषय को छोड़कर ये कभी एक शब्द नहीं बोलते । ये अत्युत्तम न्यायाधीश हैं । इस कारण, सब इन्हें बड़े सम्मान की दृष्टि से देखते हैं। इन बातों से इस न्यायालय की महत्ता की थोड़ी बहुत कल्पना करने में पाठको को कुछ सहायता जरूर मिलेगी। ये सब बातें यहाँ पर लिखने का असल मतलब यह है कि विनायक दामोदर सावरकर का मुक़द्दमा इसी न्यायालय के न्यायाधीशों के सामने पेश होगा । सावरकर इंगलैंड में पकड़े गये । एक जहाज़ में बिठाकर उन्हें इस देश को भेजने का प्रबन्ध हुआ। पुलिस के अफ़सर निगरानी के लिए साथ चले। जहाज़ मारसेलिस बन्दर में पहुँचा । यह स्थान फ्रांस के अधीन है । यहाँ सावरकर एक छेद के भीतर घुसकर जहाज़ के नीचे समुद्र में कूद पड़े और तैरकर किनारे पहुँच गये। वहां से उन्होने भागने की चेष्टा की; परन्तु पुलिस उन्हें पकड़कर फिर जहाज़ में ले आई और हिन्दुस्तान पहुंचा दिया। यह काम फ्रांस और इंगलैण्ड के पारस्परिक सन्धिपत्र के अनुकूल हुआ या प्रतिकूल, विवाद इसी वात का है । दोनो देशों ने इस विवाद का निर्णय हेग के शान्ति- निकेतन से चाहा है। आवश्यक काग़ज़-पत्रो पर दोनों पक्षों के अधिकारियों के दस्तख़त हो गये है । 15 फ़रवरी 1911 से इसकी पेशी है। हिन्दुस्तान से सम्बन्ध रखने वाला यह पहला ही मुक़द्दमा हेग के राष्ट्रीय न्यायालय में सुना जायगा। [जनवरी, 1911 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । असंकलित।] To fro Tood