पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/११७

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जापान-सागर के विजयी वीर रूस-जापान की लड़ाई के कई इतिहास अँगरेजी मे इंगलैण्ड और अमेरिका से निकलते है। भाषा-सौन्दर्य, विषय-विवेचना और आलोचना के लिए, इनमें से, कासल कम्पनी का इतिहास सबसे अच्छा है । वह लण्डन से निकलता है। पहले वह साप्ताहिक था । अब, कुछ दिनों से, मासिक हो गया है। सूगिमा की सामुद्रिक लड़ाई का वर्णन उसमें शायद नवम्बर तक छपेगा । जो इतिहास जापानी लोग खुद जापान से अँगरेजी में निकालते है, उमकी जुलाई ही की संख्या में इम लड़ाई का मविस्तर वृत्तान्त प्रकाशित हो गया है। उसे पढ़ कर जापानियों की शूरवीरता, निःसीम देशभक्ति, प्रचण्ड साहस और अप्रतिम रणकौशल का चित्र सा हृदय पर खचित हो जाता है। इम इतिहास से बहुत सी नई नई बाते मालूम हुई है । बालटिक बेड़े के, जो कि जापानी बेड़े को जड़ से नाश करने के लिए भी था, सिर्फ ब्लाडीवस्ताक पहुंचने के लिए नही, जो रूसी अफ़सर जापान में कैद है, उनसे मालूम हुआ कि अपने बेड़े के सामने वे जापानी बेडे को कुछ समझते ही न थे। इसी से निडर होकर उन्होंने जापान-सागर से निकल जाने का निश्चय किया था। एक रूसी अफ़मर की राय में रूस की हार का कारण यह हुआ कि ऐडमिरल रोजेस्को ने इस बात का पता लगाने की जरा भी कोशिश नहीं की कि जापानी वेड़ा कहाँ पर है और उसकी शक्ति कितनी है । रूसियो को अपनी शक्ति पर पहले ही से इतना विश्वास था कि इन बातो को जानने की तकलीफ़ उठाना उन्होंने व्यर्थ समझा कि जिन जहाज़ो के भरोसे रूस ने जापान को पहले ही से परास्त हुआ समझा था, जापानिया ने उनके भीतर सैकड़ा मन कोयले की खाक और कूड़ा और बाहर, समुद्री घास और काई लगी हुई पाई ! रूसियों ने अपने जहाजो मे बे-हिसाब कोयला भरा था; जहाँ कोयला लादने की जगह थी वहाँ भी और जहाँ न थी वहाँ भी । और कोयला ख़र्च हो जाने पर भी उन्होने जगह साफ न की थी। टोगो ने किस कौशल से अपने बेड़े को छिपा रखा था, यह बात जापानी इतिहास लेखक अभी नही बताना चाहता। पर जगह जगह पर वह कहता है, "as pre- arranged" (जैसा पहले निश्चय हो चुका था)। इससे प्रमाणित है कि लड़ाई के पहले ही छोटी बड़ी सब बातें निश्चित हो चुकी थी । 27 मई, 1905 को सुबह बेतार को तारबर्की से टोगो को रूसी बेड़े के आगमन की खबर मिल. ' ख़बर होते ही टोगो ने अपने सब अफ़सरों को तार दिया । जापानी बेड़ा कई भागों मे बँटा हुआ था। दोपहर होते ही सब भाग अपने अपने स्थान पर पहुँच गये। शत्रु का आगमन सुनकर खलासियो से लेकर ऐडमिरलो तक को बेहद खुशी हुई। हर आदमी को यही हौसला हुआ कि वह रूसियो को परास्त करके विजय का सारा यश अकेला ही लूट ले । लड़ाई दिन के दो बजे के करीब शुरू हुई और दूसरे दिन दोपहर बाद समाप्त हुई । -