पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/११८

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114 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली 1 जापानियों ने ऐसी वीरता दिखलाई जैसी आज तक की समुद्री लड़ाइयों में कभी नही सुनी गई थी। रूसियों का बेड़ा प्रायः समूल नष्ट हो गया । कई ऐडमिरल पकड़े गये । कई बड़े बडे जहाज पकड़े गये। 27 मई को हवा बहुत तेज थी । समुद्र क्षुब्ध हो रहा था । टारपीडो बोट और डेसट्रायर नामक छोटे जहाज समुद्र में ठहर नहीं सकते थे। इसलिये उन्हे उथले पानी में जाना पड़ा। वे शुरू लड़ाई मे शामिल नहीं हो सके । इस कारण उनके अफ़सरों और आदमियों को अवर्णनीय दुःख हुआ। उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की । ईश्वर ने उनकी प्रार्थना सुनी । शाम को समुद्र कुछ शान्त हुआ। उन लोगों की खुशी की सीमा न रही। वे भीम वेग से खुले समुद्र की तरफ़ दौड़े और मौत को एक तिनके के बराबर भी न समझकर रूसी जहाजों पर उन्होंने बड़े ही बल विक्रम से हमला किया । अनेक छोटे बड़े जहाज उन्होंने तोड़ फोड़कर समुद्र के नीचे पहुंचा दिये । उनकी बहादुरी और निर्भयता की रूसियों तक ने सहस्र मुख से तारीफ़ की। एक रूमी अफ़मर ने जापानी टारपीडो बोटो के हमले की भयंकरता को 'अवर्णनीय' कहा । टोगो ने खुद कहा कि ये लोग आपस में एक दूसरे की प्रतिस्पर्धा करके आगे बढ़ते और शत्रुओं पर, जी जान की कुछ परवा न करके, हमला करते थे। एक टारपीडो बोट बहुत ही कमज़ोर थी। पर उसने सबसे बड़ा काम किया। कई व्यापारी जहाज आ रहे थे । इशारे से उसने उनको दूर जाने को कहा। पर उन्होंने इशारे नहीं देखे । तब वह उनके पास तक दौड़ गई और उनको युद्ध की सीमा से दूर रहने के लिए खबरदार किया। वे न जानते थे कि पास ही युद्ध हो रहा है । फिर वह बोट वहाँ से लौट आई और कई एक बहादुरी के काम उमने किये । लड़ाई के अन्त में विजय की बड़ाई टोगो ने नहीं ली; अपने अफमरों को भी नही दी । दी किसे ? मिकाडो को ! धन्य उदारता ! धन्य राजभक्ति | मिकाडो ने उनर में अपनी जहाजी सेना और जहाजी अफ़मरो को यथेष्ट बधाई दी और विजय का कारण उन्ही की देशभक्ति और वीरता को बतलाया। रूस-जापान में अब परम्पर सन्धि हो गई है । सन्धि में भी महाराज मिकाडो ने अपनी उदारता से संसार को चकित कर दिया है। उन्होंने रूस से लड़ाई का खर्च नहीं लिया। सिर्फ आधा सघालीन टापू और कैदियों के खिलाने पिलाने का खर्च लेकर ही रूम को उन्होने छोड़ दिया। इस उदारता पर प्राय. सारा संसार आपकी प्रशंसा कर रहा है। पर रूस वाले कही इस उदारता को कमजोरी न समझ लें। जिन वीर अफ़सगे ने जापान-सागर में रूसी बेड़े का नाश करके जापान की सामुद्रिक शक्ति को निष्कण्टक कर दिया, उनके समूह का चित्र हम इम संख्या में प्रकाशित करते है। - [सितम्बर, 1905 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । असंकलित ।]