पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/११९

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लार्ड कर्जन-लार्ड मिण्टो लार्ड कर्जन और लार्ड किचनर में नहीं बनी । लार्ड किचनर ने फ़ौजी सुधार करना चाहा । लार्ड कर्जन ने सुधार का विरोध किया। झगड़ा बढ़ा । उसमें जगीलाट की जीत हुई। चाहिए था कि लार्ड कर्जन तभी इस्तेफ़ा देकर अलग हो जाते । पर आपने वैसा नहीं किया। आपने चाहा कि जंगीलाट के सुधार के प्रस्ताव में कुछ संशोधन हो जायें । सशोधन मंजूर हुए, पर पूरे तौर पर नहीं। खैर, बड़े लाट ने जंगीलाट के प्रस्तावो के अनुसार फ़ौजी महकमे के उद्धार में योग देना कबूल कर लिया । पर आपने एक ऐसे अफ़सर को अपनी मदद के लिए माँगा जो इस फ़ौजी संशोधन के खिलाफ़ था । इस कारण विलाय से उसके लिये मंजूरी न मिली। इस पर लार्ड कर्जन ने ख़फ़ा होकर इस्तेफ़ा दे दिया। आपके और स्टेट सेक्रेटरी के दरमियान, इस विषय में, जो लिखा पढी हुई, वह बहुत ही कट है। उससे बढ़कर विषाक्त वह लिखा पढ़ी है जिसमें लार्ड कर्जन और लार्ड किचनर ने परस्पर एक दूसरे की बातों की समालोचना की है। गवर्नमेण्ट के इतने बड़े अधिकारियो के दरमियान ऐसा तीव्र वाद-प्रतिवाद शायद ही और कभी हुआ हो । लोगों की राय है कि लार्ड कर्जन का पक्ष ठीक है, किचनर का ठीक नहीं । जिस तरह का फ़ौजी संशोधन विलायती गवर्नमेण्ट ने लार्ड किचनर के कहने से मंजूर किया है, उसमें जंगी लाट का प्रभुत्व और फ़ौजी खर्च दोनों बढ़ जायेंगे। हिन्दुस्तानियों की दृष्टि में लार्ड कर्जन ने, अपने समय में, जितने बुरे और भले काम किये हैं, उनका हिसाब इस तरह है- भले (1) योरोपियनो के हाथ या लात से हिन्दुस्तानियो की मृत्यु, या उग पर होने वाले हमलों को रोकने का प्रबन्ध । (2) व्यापार, कलकारखाना आदि के सम्बन्ध में अलग एक महकमे की स्थापना । (3) पूसा में कृषिविद्या-विषयक कालेज। (4) नमक पर सरकारी महसूल का कम कर देना। (5) पांच सौ की जगह हजार रुपये या अधिक आमदनी पर टैक्स (टिकट)लगना। (6) जो गोरी फ़ौज बोरों से लड़ने के लिए अफरीका भेजी गई थी, उसका खर्च इंगलैण्ड को दिलाये जाने के लिए लड़ना। (7) गोरी फ़ौज की तनख्वाह बढ़ाकर एक करोड़ से भी अधिक रुपये का खर्च हिन्दुस्तान पर लादने के विलायती प्रस्ताव का विरोध करना। (8) लार्ड किचनर के फ़ौजी प्रभुत्व व इस प्रस्ताव को रोकने की चेष्टा करना। (9) प्राचीन स्थानों और इमारतों को नष्ट होने से बचाना।