पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१२५

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जापान की शिक्षा-प्रणाली 'नेशनल रिव्यू' नामक अँगरेज़ी के मामयिक पत्र में एक लेख जापान की शिक्षा-प्रणाली पर निकला है। उसमें लिखा है कि जापान के छोटे-छोटे लड़के जो मदरसों में पढ़ते हैं, वे छ बजे मुबह खाना खा चुकते हैं। सात बजे वे मदरसे जाते हैं और बारह बजे तक वहाँ रहते हैं। इन पाँच घण्टों में खेल-कूद के लिए भी उन्हें वक्त मिलता है। इतवार को सब दिन छुट्टी रहती है; शनिवार को आधे दिन । बीच जाड़ों में 15 दिन की छुट्टी होती है और एक एक हफ्ते की अप्रैल और अगस्त में। एक तजविकार अंगरेज शिक्षक लिखता है कि उसने जापानी लड़कों को आपस में झगड़ा करते कभी नहीं देखा । माल में कम से कम एक दफ़े लड़को को बाहर सफ़र करने जाना पडता है। इस सफ़र में जितनी बातें सिखलाई जा सकती है, सिखलाई जाती है । बेत की सजा नही दी जाती। जापानी स्कूल मास्टर कभी गुस्सा नही करते, गुस्सा करने से वे लोग दूसरो की नज़र में गिर जाते हैं । लड़के अपना मबक़ खूब दिल लगा कर याद करते हैं। मवक याद करने से जी चुराना वे जानते ही नहीं। अमीर और ग़रीब सबके लड़के एक ही माथ मदरसे जाते हैं । जापानी लोग काम करने और बोलने में बेहद शिष्टाचार दिखलाते है; वे कभी किसी के माथ असभ्यता का व्यवहार नहीं करते। जापान में वजीफे भी खूब दिये जाते है। कुछ वज़ीफ़े वहां उधार के तौर पर भी दिये जाते हैं। जिन लड़कों को ऐसे वजीफ़े मिलते है, वे जब पढ लिख कर तैयार हो जाते है, तब वे अपने ही समान दूसरे लड़के के फ़ायदे के लिए अपने वजीफे का रुपया लौटा देत है। मदरसो में कसरत करना भी मिखाया जाता है । लड़के तोते की तरह किताबें नही रटने पाते । प्रारम्भिक मदग्मो में हफ्ते मे दो घंटे नीति-शिक्षा दी जाती है। जो मदरसे कुछ बड़े है, उनमें हफ़्ते मे एक घंटा नीति-शिक्षा दी जाती है। नीति की शिक्षा में, ऐतिहासिक और मामूली आदमियो के उदाहरण देकर, नीति के तत्त्व अच्छी तरह समझा दिये जाते है। नीति-शिक्षा में जो उदाहरण दिये जाते है, उनमे बहादुरों की बहादुरी का जिक्र नही रहता। उनमे उदान्ता, दया और आत्म-संयमन (अपने आपको काबू मे रखना) आदि गुणो की महिमा हती है। जापानियो में धाम्मिक उत्साह कम, पर देश-भक्ति और उदारता अधिक होती है । 1892 ईमवी में जापानी लड़को की एक क्लास मे यह पूछा गया कि उनकी सबसे बड़ी अभिलाषा क्या है ? इसके जवाब में उन्होने लिखा-"सबसे अधिक प्यारे अपने राजेश्वर के लिए मर जाने की अनुमति पाना" । जापानी लोग अपने राजा को ईश्वर का अवतार समझते हैं। जापान में स्त्री-शिक्षा का भी अच्छा प्रचार है। 1900 ईसवी में स्त्रियो की 'जी यूनीवसिटी' (विश्वविद्यालय) टोकियो में स्थापित हुई, वह सबमें श्रेष्ठ है। जो लोग पुराने ख़यालात के थे, उन्होंने इस विश्वविद्यालय के स्थापित होने में बहुत कुछ प्रति-