पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१३०

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126 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली . (3) शान्ति के समय, बिना पारलियामेंट की मंजूरी, अधिक फ़ौज रखना बेकायदे समझा जाय । (4) प्रजा को अधिकार है कि वह राजा से न्याय की प्रार्थना कर सके । (5) पारलियामेंट के सभासदों के चुनाव के काम में प्रतिबन्ध न हो; सब तरह की स्वतन्त्रता दी जाय । (6) पारलियामेंट में बोलने और वाद-विवाद करने के सम्बन्ध में जो स्वतन्त्रता है उसके औचित्य या अनौचित्य का निर्णय पारलियामेंट ही में हो, बाहर नहीं। (7) प्रजा के दुखनिवारण का विचार करने और कायदे-कानून को अधिक मजबूत बनाने के लिए पारलियामेंट की बैठक बार-बार हुआ करे । अनेक राजकीय अंगरेजों की राय है कि यह पूर्वोक्त कानून पास हो जाने से अनेक प्रकार के सुभीते हो गये हैं, अनेक प्रकार के झगड़े बन्द हो गये हैं और अनेक गजकीय काम पहले की अपेक्षा अव अधिक अच्छी तरह होने लगे हैं । एक ग्रन्थकार कहता है कि ये पराक्रम अंगरेजी राज्यरूपी किले की मजबूत दीवारें हैं । इनके होने से किले की रक्षा उत्तम प्रकार से होती है। इन तीनों पराक्रमों के विषय मे राजकार्य- धुरन्धर लार्ड चाथम ने एक बार कहा था-"अँगरेजी स्वातन्त्र्य का माग धर्मशास्त्र इन्ही में है।" अपनी स्वातन्त्र्य-रक्षा के लिए यह किला अँगरेजों ने अपने देश, इंगलैंड, में बनाया । परन्तु आश्चर्य की बात यह है कि जहाँ-जहाँ वे जाते हैं वहाँ-वहाँ वह उनके साथ जाता है। उमे वे स्वयम्भू समझते हैं। वह उनमे कभी दूर नहीं रहेंता । अब कोई दो मौ वर्ष से अँगरेज लोग इस देश में भी आ गये हैं। और हमारा और उनका रिश्ता गजा-प्रजा का हो गया है। अतएव उनका यह स्वयम्भू किला इस देश मे भी किसी हद तक आ पहुंचा है और हम हिन्दुस्तानियो को उमके भीतर रहने का मौका मिला है। हमारी जान और हमाग माल मब उसके भीतर सुरक्षित है। इसमें कोई आश्चर्य या विलक्षणता की बात नहीं । पूर्वपुरुषों की उपाजिन सम्पत्ति का उपभोग छोटे-बड़े मभी भाइयों को वगबर प्राप्त होता है । यह बात मर्वथा धर्मशास्त्र के अनुकूल है । यह एक प्रकार का आलकारिक वर्णन हुआ। इसे जाने दीजिए। यह वात माफ़-साफ़ इस तरह कही जा सकती है कि इगलैंड की प्रजा ने प्रचण्ड परिश्रम करके, जिन बातों को ध्यान में रखकर, अपने लिए कानून पाम कग लिये है, उन्हीं वातों को ध्यान में रखकर, इस देश के गज्य के सम्बन्ध मे भी, अंगरेजी गवर्नमेट ने बहुन समझ-बूमकर कायदे कानून बनाये है । ग्ल, नार, छापत्राने, फ़ोटोग्राफ़, फ़ोनोग्राफ़, टेलीफ़ोन, बाई मिकल, मोटरकार पुतलीघर इत्यादि चीजे यन्त्र और कल-कारखाने जैसे अंगरेज लोगो के परिश्रम से विलायत में प्रचलित होकर पीछे से हम लोगों को प्राप्त हुए हैं और उसमे हम लोग फायदा उठा रहे हैं, उसी तरह यहाँ की गरेजी गवर्नमेंट के कायदे-कानून भी इंगलैंड के लोगों के परिश्रम और प्रयत्न से वहाँ सिद्ध होकर अब वे हमें भी अनायास प्राप्त हुए हैं। हम लोगों में से एक साधारण आदमी को भी, अब, सरकारी सिपाही को यह कहने का अधिकार प्राप्त है कि बिना समन के मैं कचहरी में नहीं हाजिर हो सकता; और -