पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१३१

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अंगरेजी प्रजा का पराक्रम / 127 किसी को पकड़ने के बाद 24 घण्टे के भीतर ही न्यायाधीश के सामने, उस पर किये गये आरोप का विचार करने के लिए, हाज़िर करना तुम्हारा कर्तव्य है । यह अंगरजी कायदे-कानून ही की महिमा का प्रभाव है । अँगरेजी राज्य के पहले ये बातें यहाँ कहीं स्वप्न में भी न थीं। अँगरेज़ लोगों के परिश्रमों का जो फल हुआ है उसका अंश अब हमें सहज ही में मिल रहा है । यह हमारे लिए एक अलभ्य लाभ है । अथवा यह समझना चाहिए कि एक भाई की प्राप्त की हुई मम्पत्ति का उपयोग दूसरे भाई को होना न्याय्य ही है । धर्मशास्त्र की आजा ही ऐसी है। या यों कहिए कि दूसरी अर्वाचीन विद्याओं की तरह, राज्य-व्यवहार-विद्या में अंगरेज़ लोग हमें उत्तम गुरु मिले हैं । सद्गुरु की हमेशा यही इच्छा रहती है कि अपना शिष्य अपने ही समान प्रवीण और योग्य हो। अतएव इस सुयोग का हमें अच्छा उपयोग करना चाहिए। [मार्च, 1907 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'पुरावृत्त' पुस्तक में संकलित।