पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चीन के विश्वविद्यालयों की परीक्षा-प्रणाली - चीन संसार में सबसे अधिक आबाद देश है। पर वह शिक्षा में बहुत पीछे है । यद्यपि वहाँ शिक्षित लोगों की बड़ी क़दर है, तथापि उनकी जीविका का मैदान बहुत तंग है। यदि उन्हें सरकारी नौकरी न मिली तो वे अध्यापकी या मुहरिरी करके जैसे-तैसे अपने दिन बिताते हैं । विशेष कर उन चीनी शिक्षितों की मिट्टी और भी ख़राब होती है, जो किसी कारण से पदवी (Degree) नहीं प्राप्त कर सकते । वे छोटी छोटी देहाती पाठ- शालाओं में, जिनमें पचीस-तीस से अधिक लड़के नही होते, सात आठ रुपये मासिक पर अपना जीवन बड़े कष्ट से बिताते हैं । वे बार-बार परीक्षाओं में शामिल होते हैं और इस आशा पर जमे रहते हैं कि जब हम कृतकार्य होंगे, तब हमारा भाग्य अवश्य ही जगेगा। ऊंची ऊंची परीक्षाओं के हजारों उम्मेदवारों में से अधिकांश चालीस-पचास वर्ष की उम्र वाले होते हैं । इनमें से कुछ ऐसे भी होते हैं, जिनके बाल बिलकुल सफ़ेद हो गये है और जो अपने नाती-पोतों के माथ बैठकर काँपते हुए हाथ से इस आशा से निबन्ध लिखते हैं कि शायद बुढापे ही में धन और यश मिलना बदा हो । पर दुर्भाग्य से हजारो में सिर्फ चालीस पचास ही पाम होते हैं। प्रति वर्ष अधिकांश उम्मेदवारों के फेल हो जाने का कारण यह है कि चीनी परीक्षाओं की प्रणाली इतनी दोष-पूर्ण है कि परीक्षोत्तीर्ण होना बड़ा दुस्माध्य कार्य है । वह इतनी अद्भुत और जटिल होती है कि विदेशियों के लिए उमका समझना अत्यन्त ही कठिन है। इस तरह की परीक्षा संसार में शायद ही और कही होती हो । सबसे पहली अर्थात् नीचे दर्जे की परीक्षा साल में एक दफ़े होती है। इसे प्रत्येक जिले का शासनकर्ता लेता है। उसका काम यह है कि वह सबसे खराब उम्मेदवारों को अलग कर दे और बचे हुए उम्मेदवारों को, जिनकी योग्यता काफ़ी समझे, अपने से ऊँचे अधिकारी के पास भेज दे । जो उम्मेदवार इस हाकिम की भी परीक्षा में उत्तीर्ण हो गये, उनकी परीक्षा शिक्षा- विभाग के सर्वोच्च अधिकारी के द्वारा ली जाती है । यही अधिकारी उन्हें 'Hsiu Tsai' की पदवी देता है। यह अफ़मर किसी प्रान्तिक शासन-कर्ता के अधीन नही होता। वह मीधे सम्राट मे पत्र-व्यवहार कर सकता है । वही उसको नियुक्त करते हैं। वह तीन वर्ष के लिए नियत किया जाता है । उमका प्रभुत्व किमी गवर्नर से कम नहीं होता। इम तरह अयोग्य विद्यार्थियों की छंटनी होते होते जो सबसे अच्छे विद्यार्थी वच रहने हैं, वही परीक्षा दे मकते हैं । प्रत्येक परीक्षा में दो निबन्ध और कुछ पद्य लिखाये जाते हैं । निबन्धों में चीनी ग्रन्थों के रणों की भरमार होनी चाहिए। विद्यार्थियों को कोई नई बात सोचने के लिए अपने मस्तिष्क पर जोर नहीं देना पड़ता । हजारो वर्ष की पुरानी बातें, तोते की तरह रटकर, वे छुट्टी पा जाते हैं। जो कुछ उनमें लिखा हुआ है, उसी को सहस्रशः विद्यार्थी प्रति दर्ष आंख बन्द करके लिखते चले जाते हैं । चीन की