पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१५२

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148/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली कहा जा चुका है। उसका तुर्की नाम है 'जमासोफ़िया'; तथापि सैकड़ों वर्ष बीत जाने पर भी ईसाई संसार ने उससे ममता नहीं छोड़ी। क्रास के स्थान पर चन्द्र-चिह्न देखकर, कान्सटैन्टीनोपिल के ईसाई यात्री के हृदय में जब तब शूल उठता है । पश्चिमी योरप की ईसाई जातियों का विश्वास है कि एक दिन ऐसा अवश्य आवेगा, जब सेण्ट सोफ़िया में इसलामी अजाँ के बदले पादड़ियों के घण्टों का नाद सुनाई पड़ेगा। ये जातियाँ चुप भी नही बैठी। समय समय इन्होंने सेण्ट सोफ़िया पर अधिकार प्राप्त करने का भरसक प्रयत्न भी किया। अठारहवीं शताब्दी के तृतीय और चतुर्थ चरण में रूस का शासन-सूत्र रानी कैथराइन के हाथ में था। वह बड़ी ही चालाक और कट्टर ख़याल की रानी थी। वह तुर्को को योरप से मार भगाना और कान्सटेन्टीनोपिल में ईसाई राज्य स्थापित करना चाहती थी। 1768 से 1796 ईसवी तक उसने टर्की को बहुत तंग किया। वह टर्की से लड़ी भी। यदि आस्ट्रिया बीच बीच में उसकी गति का बाधक न बनता तो वह योरप से तुर्कों को निकाले बिना न छोड़ती । तो भी उसने तुर्कों के राज्य का बहुत सा भाग छीन लिया और मन्धि करते समय उनसे एक ऐसी शर्त करा ली जिसके कारण टर्की को पीछे बहुत सी विपत्तियां झेलनी पड़ी । उस शर्त के अनुसार रूस को तुर्कों की राजधानी में एक गिरजाघर बनाने का स्वत्व प्राप्त हुआ। मन्धि-पत्र में एक शर्त यह भी थी कि उम गिरजाघर मे सम्बन्ध रखने वाले ईमाइयों के विषय में यदि कभी रूम को कुछ कहना पड़े, तो तुर्कों को उस पर अवश्य विचार करना चाहिए । इस शर्त से रूस ने अपना अच्छा मतलब गाँठा । वह टर्की की ईमाई प्रजा का संरक्षक बन बैठा । इधर टर्की की दशा खराब ही होती गई । राज्य में उत्पात बढता गया। वहाबी नाम का एक मुमलमानी पन्थ भी इसी ममय निकल पड़ा। उमकी धाम्मिक कट्टरता ने टर्की की ईमाई प्रजा के हृदय में अशान्ति की अग्नि और भी भडका दी। उधर वालकन की ईमाई जातियाँ कुछ तो उकसाई जाने से और कुछ अपनी पडोसी अन्य जातियों को स्वतन्त्रता का सुख अनुभव करते देख टर्की की गुलामी का तौक़ उतार फेकने के लिए वेचैन होने लगी। इम बीच में नेपोलियन ने मिस्र मे फ्रान्स का झण्डा गाड़ दिया। परन्तु वह अधिक दिनो तक न रह सका। इंगलैंड नेपोलियन का परम शत्रु था। उमी की कृपा से वचाग टर्की अपनी इम छीनी गई मम्पत्ति को फिर पा गया। ग्रीक लोग भी उधर स्वतन्त्र होने की फ़िक्र में थे। वे भी टर्की से लड़े-भिड़े। परन्तु अन्त मे मुक़ाबिले में न ठहर सके। इधर रूस की महायता से मर्बिया वाले उठ खड़े हुए। वे वर्षों टर्की से लड़ने- भिडने रहे। अन्त में, 1817 में; उन्होने स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली। अब ग्रीक लोग चुप न बैठ सके। वे फिर बिगड़े, पर वेतरह हारे। योरप के राज्यो ने बीच-बचाव कर देना चाहा; परन्तु टर्की ने उनकी एक न सुनी। हम पर, 1827 मे, इगलैंड, रूम और फ्रास ने अपनी संयुक्त नाविक सेना लेकर टों पर चढ़ाई कर दी। फल यह हुआ कि टर्की हाग। ग्रीम स्वतन्त्र हो गया। रूम ने भी कुछ भूमि अपने राज्य में मिला ली। टर्की को इन झगड़ा से छुट्टी मिली तो मिस्र का मुहम्मद पाणा, सीरिया छीनने की नीयत से, । उस