पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१५३

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तुर्को का उत्थान और पतन / 149 पर आक्रमण कर बैठा । बड़ी मुशकिलों से, इंगलैंड की कृपा से, उसे मुहम्मद के चंगुल से छुटकारा मिला। 1853 मे रूम फिर टर्की से भिड़ पड़ा। इस युद्ध का कारण यह था कि अब रूम अपने को टर्की की मारी ईमाई प्रजा का संरक्षक कहने लगा था। टर्की को यह बात अच्छी न लगी। उमन इमका विरोध किया। बस, फिर क्या था; युद्ध छिड़ गया। इम बार इगलैंड और फ्रांम ने टर्की की सहायता की। अन्त में रूस को नीचा देखना पड़ा। उसे कुछ दबना भी पड़ा । युद्ध के बाद टर्की ने घोषणा की कि अब से धर्म, भाषा और जाति के लिहाज से किसी के साथ कुछ रिआयत न की जायगी। योरप के गप्ट्रो ने भी वचन दिया कि उनमे से कोई भी, अब, टर्की के घरेलू झगड़ों में हस्तक्षेप न करेगा। यह युद्ध, इतिहास में, क्राइमियन युद्ध के नाम से विख्यात है। टर्की ने करने को तो घोषणा कर दी, परन्तु उत्पात होते ही रहे और ईमाई यह शिकायत करते ही रहे कि हमें कष्ट मिल रहा है। पर उन्हें सचमुच ही कष्ट मिलता था या नहीं, यह भगवान ही जाने । अन्त में, 1877 में, सविया और मान्टीनिग्रो ने टर्की के विरुद्ध गाठाया। रूस ने उनका माय दिया। पर किमी ने टर्की का पक्ष न लिया। अन्त में टर्की को हार कर मन्धि करनी पड़ी। सबिया; रूमानिया और मान्टीनिग्रो पूर्णतया स्वतत्र हो गये। बलगेरिया नाम का एक बड़ा भारी ईसाई राज्य अलग बन गया। वह टर्की के अधीन रखा गया। वोसनिया और हर्जीगोविना नाम के दो तुर्की प्रान्त आस्ट्रिया की देख-रेख में रहे: पर नाम मात्र के लिए। राज-सत्ता उन पर टर्की ही की मानी गई। ग्रीम ने अपनी मीमा बढ़ा ली। टर्की ने मैसीडोनिया प्रान्त का सुधार करने का वचन दिया। टर्की साम्राज्य का योरपियन शरीर बिलकुल ही कट-छंट गया। इस कतरनी का, जिसने इतनी काट-छाँट की, नाम है 'बलिन की सन्धि' । टर्की के भाग्य मे इतनी ही दुर्गति न बदी थी। उसे अपने शरीर को और भी कटवाना पड़ा। 1908 में, टर्की में एक नवीन भाव का संचार हुभा। युवा तुर्को ने स्वेच्छाचारी सुल्तान अब्दुल हमीद को सिहासन से उतार कर कैद कर लिया। उन्होने एक पारलियामेंट बना ली। प्रजा की व्यवस्था के अनुसार काम करने की शपथ खाने वाले शाही खानदान के एक आदमी को सुलतान का पद दिया। परन्तु उस क्रान्ति के समय टर्की को निर्बल देख कर आस्ट्रिया ने बोसनिया और हर्जीगोबिना को हड़प लिया। उधर बलगेरिया भी स्वतन्त्र बन बैठा। अभी उस दिन इटली ने भी टको से ट्रिपोली छीन लिया। अव मिस्र में उसकी अंगुल भर ज़मीन न रह गई। योरप मे मैसीडोनिया और अलबानिया आदि दो एक सूबे जो टर्की के अधीन रह गये थे, वे भी अब गये ही समझिए। ईमाइयों की नजरों में वे वेतरह खटक रहे थे। उन्ही की प्राप्ति के लिए इस समय बालकन प्रायद्वीप में युद्धाग्नि प्रज्वलित है । ग्रीस, सर्बिया, बलगेरिया और मान्टीनिग्रो मिल गये हैं। सबने एक माथ टर्की पर चढ़ाई की है। भीतर ही भीतर योरप की और शक्तियां भी, अपना अपना आन्तरिक मतलब साधने के लिए, उन्हें पुचाड़ा दे रही हैं । ये लोग मन ही मन तुर्कों से कहते हैं-"निकल जाव पूरप से। यूरप ईमाइयों के लिए है, मुसलमानों के लिए नहीं। ईसाइयों पर एशियावालों को सत्ता चलाने का मजाज नहीं"।