पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१६४

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160/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली ही उनमें शिक्षा पा सकते हैं । पढ़ना, लिखना और गिनना-इन्हीं तीन विषयों की शिक्षा लोगों को दी जाती है। पढ़ने से मतलब व्याकरण, अलंकार और धर्म-शास्त्र के अध्ययन से है । लोग अलंकार-शास्त्र के अध्ययन की ओर अधिक ध्यान देते है। दलाई लामा को जो पत्र लिखे जाते हैं उनकी भाषा बड़ी ही क्लिष्ट होती है। विद्वानों को अपने पत्रों में शब्दच्छटा दिखाने का बड़ा शौक़ है । लेखक जितनी ही कठिन भाषा लिख सके उतनी ही उसकी क़दर होती है। लिखना सीखने के लिए तो लोगों को और भी अधिक परिश्रम करना पड़ता है। बच्चों को गिनना, पत्थर या लकड़ी के टुकड़ों की सहायता से, सिखाया जाता है । कावागुची ने एक जगह लिखा है-"यहाँ के विद्यार्थियों की स्मरण-शक्ति बहुत अच्छी है। 15 बरस के बालक को साल भर में 300 से लेकर 500 पृष्ठ तक मुखस्थ करने पड़ते हैं । इसमें भी आफ़त यह है कि उन्हें कभी ग्रन्थों से भेंट नहीं होती। गुरु की मौखिक शिक्षा ही पर उन्हें अवलम्बन करना पड़ता है।" तिब्बत के कई एक विद्यालयों में वहुत से लोग मंगोल देश के भी पाये जाते हैं। ये बड़े परिश्रमी होते हैं। पढ़ने लिखने में तिब्बती लोग इनकी बराबरी नहीं कर सकते । क्योकि वे बडे आलसी होते हैं। उनके शान्त, मिलनसार और तेज होने में कोई मन्देह नहीं; पर वे परिश्रम करना बहुत कम पसन्द करते हैं। इन दोनो के मिवा एक तीसरे प्रकार के विद्यार्थी भी इम देश में पाये जाते है । ये वाम प्रान्त के निवासी है । पढने लिखने मे ये सबसे पीछे हैं; पर शारीरिक परिश्रम में इनका नम्बर मबसे बढ़ा चढ़ा है। इनका स्वभाव बहुत सच्छा होता है । चापलूमी करना ये जानते ही नही। वीस बरम में विद्यालय की पढ़ाई समाप्त करने पर विद्यार्थी को 'आचार्य' की उपाधि मिलती है । उस दिन वह समझता है कि उमके जीवन का उद्देश सफल हो गया। ज्ञानप्राप्ति की इच्छा से तिब्बत में शायद ही कोई विद्यार्थी पढ़ता लिखता हो । समाज में प्रतिष्ठा पाना और खूब धन कमाना ही लोग वहाँ विद्याध्ययन का असली मतलब समझते है । आचार्य की उपाधि पाने पर विद्यार्थी को अपने शिक्षकों को एक भोज देना पड़ता है । यदि विद्यार्थी ग़रीब हआ तो उसे उस समय मूद पर रुपया कर्ज देने वाले भी मिल जाते हैं। क्योकि आचार्य हो जाने के कारण लोगो को कर्ज अदा करने में कोई विशेष कठिनता नही होती। तिब्बती औरतें और बच्चे तिब्बत में मर्दो और औरतों की पोशाक में कोई विशेष अन्तर नहों । हाँ, औरतो की पोशाक कुछ सुन्दर और भड़कीली अवश्य होती है। वे गले में कीमती पत्थरों से जड़ा हुआ एक हार पहनती हैं। उनके दोनो हाथों में दो कंकण होते हैं। उनमें से एक शंख और दूसरा चाँदी का होता है । कानो में रुनहले बाले पहनने का भी रवाज है। लासा में रहने वाली प्रायः सभी स्त्रियाँ ऊनी अंगरखे काम में लाती है। चाँदी की म.दि. 10.4