पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१७३

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स्वेज नहर / 169 नहर की उन्नति का काम धड़ाधड़ जारी है । 1896 से अब तक 2,16,00,000 रुपये नहर को चौड़ा और गहरा करने में लगे हैं। नहर के एक सिरे से दूसरे मिरे तक बीस से अधिक स्टेशन बन गये हैं । टेढ़ी मेढ़ी और ऊँची नीची जगह बराबर कर दी गई है । तीन-तीन मील की दूरी पर जहाजों के एक दूसरे को पार करने के लिए नाके दनाये गये है । इस बीच में नहर के नौकरों की दशा भी बहुत सुधर गई है । वहाँ मच्छड़ और बुखार की इतनी अधिकता थी कि लोग उनके मारे बारहों मास तंग रहते थे। पर अब उनका कहीं नामोनिशान नही । पहले की अपेक्षा अब वहाँ मफ़ाई भी खूब रहती है । एक बड़ा भारी अस्पताल और कई औषधालय भी खोले गये हैं । वहाँ लोगों की चिकित्सा मुफ्त की जाती है। नहर के अधिकारियों की आमदनी जैसे जैसे बढ़ती जाती है, वैसे ही वैसे महमूल भी कम होता जाता है। शुरू में जब नहर खुली थी, तब भरे हुए माल के जहाजो का महसूल छ: रुपये फी टन (सवा सत्ताईस मन) था। सन् 1880 में तीन आने टन कम हो गया; अर्थात् पाँच रुपये तेरह आने टन रह गया । कुछ दिनों बाद महसूल और भी घटा कर माढ़े चार रुपये टन कर दिया गया, जो इस समय तक बना हुआ है । मुमाफ़िरी जहाजो का महसूल छ: रुपये टन जैसा पहले था, वैसा ही अब भी है । कम्पनी का रिजर्व फण्ड (अलग रख दिया गया धन) इस समय 2.50,00,000 रुपये है। इसके सिवा एक विशेष फण्ड और भी है, जिससे नहर की मरम्मत और उन्नति के लिए यन्त्र आदि ख़रीदे जाते है । इस फण्ड में इस समय 1,80,00,000 रुपये है। ब्रिटिश गवर्नमेट के लिए यह नहर बड़े ही काम की चीज़ है। इसी से इसकी रक्षा प्राण-पण से की जा रही है। - [जनवरी, 1915 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । संकलन' पुस्तक में संकलित।