पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१७६

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172/महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली रखने के लिए हर शहर में पुलिस एक रजिस्टर रखने लगी। इसके बाद हिन्दुस्तानियों पर एक और विपत्ति आई । लार्ड मिलनर ने आज्ञा दी कि हिन्दुस्तानियों को फिर से अपना नाम रजिस्टर कराना आवश्यक होगा। पर उन्होंने विश्वास दिलाया कि एक बार हो जाने पर फिर कभी रजिस्टरी न होगी। जिमको रजिस्टरी का प्रमाणपत्र मिल जायगा, वह चाहे जहाँ ट्रान्सवाल भर मे व्यापार कर सकेगा। 1885 ईसवी वाला पहला क़ानून भारतवासियों को सता ही रहा था; इस दूसरे कानून ने भी उनकी शान्ति में बड़ी बाधा पहुंचाई। उन्होंने इसी कारण वहाँ की सबसे बड़ी अदालत में इस आज्ञा के विरुद्ध मुकद्दमा दायर कर दिया। जजों ने मुक़द्दमे का फैसला यह किया कि हिन्दुस्तानी चाहे जहाँ व्यापार कर सकते हैं। उन्हें शहर के बाहर किमी नियत स्थान में न रहने के कारण कानूनन कोई सज़ा नहीं दी जा सकती। यह फैसला हिन्दुस्तानियों के विरोधियों को बहुत ही बुरा लगा। उन्होने इस फैसले को रद्द कराने की खूब चेष्टा की । पर, उपनिवेशों के सेक्रेटरी, लार्ड लिटलटन; के जोर देने पर उनका वह प्रयत्न उस समय व्यर्थ गया। इसके बाद ट्रान्सवाल वालो ने यह शोर मचाया कि झण्ड के झुण्ड हिन्दुस्तानी ट्रान्मवाल में घुसे चले आते हैं। धीरे-धीरे उनका यह स्वर और भी ऊँचा हो चला। इतने ही मे जोन्सबर्ग नामक नगर के हिन्दुस्तानियों के निवास स्थान में प्लेग फूट पड़ा। इस कारण वहां के हिन्दुस्तानी सारे ट्रान्सवाल में फैल गये । ट्रान्सवाल वालो को यह अच्छा मौका मिला। इस पर उन्होंने यह निश्चय कर लिया कि नये भारतवासियों को वहाँ न घुमने देना चाहिए। जो है, उन्हें शहर के बाहर रखना चाहिए और वहीं उन्हें बनिज- व्यापार की अनुमति होनी चाहिए । हिन्दुस्तानियो ने यह देख कर, एक कमीशन के द्वारा अपने दुःखों की जांच की प्रार्थना सरकार से की। पर वह न सुनी गई। अन्त मे 1906 ईसवी में एक क़ानून बना। उसके अनुसार हिन्दुस्तानी स्त्री- पुरुषों और बच्चों तक को फिर मे नाम रजिस्टर कराने की आज्ञा हुई । हिन्दुस्तानियों ने इस विपत्ति से बचने की पूरी चेष्टा की। उनकी प्रार्थना पर केवल स्त्रियाँ उक्त कानून के पंजे से मुक्त हो सकी; और कुछ न हुआ। तव जोन्सबर्ग में हिन्दुस्तानियों ने एक बड़ी भारी सभा की। उसमें सभी ने मिल कर यह प्रतिज्ञा की कि जब तक ऐसे दुःखदायी कानून रद्द न किये जायें, तब तक उन्हें कोई न माने । बस, इसी समय से हिन्दुस्तानियों के निष्क्रिय प्रतिरोध (Passive Resistance) का आरम्भ हुआ। उनके कई प्रतिनिधि इंगलैंड भी पहुंचे। वहाँ उस क़ानून पर विचार करने के लिए एक कमिटी बनी। कमिटी के उद्योग से इस कानून का जारी होना थोड़े दिनो तक के लिए मुलतवी रहा । इस बीच में हिन्दुस्तानियों के मुखिया लोगो ने गवर्नमेंट से यह कहा कि हम खुशी से अपने नाम रजिस्टर करा देंगे, आप इस कानून को जारी न कीजिए; पर कुछ फल म हुआ। कानून का मसविदा ट्रान्सवाल की पार्लियामेंट में पेश हुआ और पास भी हो गया। 1907 ईसवी में जब से यह कानून ,