पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/१७८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

174 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली रद्द न हुआ। उसमें कुछ परिवर्तन मात्र कर दिया गया। वास्तव में जाति-भेद दूर कर देना गोरों को पसन्द न था। इसी से वे कभी कुछ बहाना कर देते, कभी कुछ । कभी कोई पख लगाई जाती कभी कोई । इस कारण हिन्दुस्तानियों की विपत्ति का पारावार न रहा। उनका विवाह नाजायज समझा जाता। उनकी सन्तति उनकी जायदाद की हक़दार तक न समझी जाती। अन्त मे आजिज आकर हिन्दुस्तानियों ने 1913 के सितम्बर महीने से अपनी घोर निष्क्रिय प्रतिरोध की लड़ाई नये सिरे से जारी की। हिन्दुस्तान ने भी धन द्वारा उनकी पूरी सहायता की। यह देखकर हिन्दुस्तान की और विलायत की भी गवर्नमेंट ने ज़ोर लगाया। तब हिन्दुस्तानियों के दुःखों की जांच करने के लिए वहाँ सरकारी अफ़सरों की एक कमिटी बैठी । भारत-गवर्नमेंट के भेजे हुए सर बेंजामिन गबर्टसन भी उसमें शामिल हुए। उन्होंने हिन्दुस्तानियों की शिकायतों की अच्छी तरह जांच की। उनकी रिपोर्ट हिन्दस्तानियों के पक्ष में हुई और उनकी अधिकांश शिकायतें दूर कर दी गई। इस सम्बन्ध में श्रीयुत गांधी का परिश्रम और अध्यवसाय सर्वथा प्रशंसनीय है। आपने ही अफ़रीका के हिन्दुस्तानियों में जीवन का संचार किया है। आप जूनागढ़ के निवासी हैं । बैरिस्टर हैं । तो भी आप जेल जाने, नाना प्रकार की यातनायें भोगने और तिरस्कार पाने पर भी अपने कर्तव्य से च्युत नहीं हुए। आपकी धर्म-पत्नी, आपके सुयोग्य पुत्र-सभी आपके व्रत के व्रती हुए । आपके सहायकों ने भी आपका पूरा साथ दिया । उनमें से मिस्टर पोलक और मिस्टर कालनबाक आदि विदेशी सज्जनों तथा 2500 से ऊपर हिन्दुस्तानियों ने कड़ी जेल की सजा भी भुगती। हमें दक्षिणी अफ़रीका के हिन्दुस्तानियों के मुख-पत्र इंडियन ओपिनियन का एक विशेष अंक (Golden Number) मिला है। यह पत्र श्रीयुत गांधी ही का निकाला हुआ है । फ़ीनिक्स नामक स्थान से अंगरेजी और गुजराती में निकलता है । उसके इस अंक में पूर्वोक्त निष्क्रिय प्रतिरोध की बड़ी ही हृदय-द्रावक कहानी है। मिस्टर गांधी और अन्यान्य नामी नामी आदमियों की सम्मतियाँ भी हैं। जेल में जाने तथा अन्य प्रकार की सहायता देनेवाले नरनारियों के छोटे-मोटे 138 चित्रों से यह अंक विभूषित है। । यह मिस्टर गांधी के निष्क्रिय प्रतिरोध की यादगार में निकाला गया है। दिव्य है। पढ़ने और संग्रह में रखने की चीज़ है। पाठकों को यह मालूम ही होगा कि श्रीयुत गांधी अब भारतवर्ष लौट आये हैं। - [अप्रैल, 1915 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'संकलन' पुस्तक संकलित ।]