पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२२०

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216/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली -- ने उस अधिकारियों ने जेन और डडले के विवाह-मण्डप को सुशोभित किया । बड़े आनन्द और उत्सव के साथ विवाह का मंगल कार्य समाप्त हुआ। 6 जुलाई 1553 ईसवी को एडवर्ड की मृत्यु हुई । अतएव रानी जेन की माम ने उससे कहा कि वह इंगलैंड का राज-मुकुट शीघ्र ही धारण करने के लिए तैयार रहे। यह सुनकर जेन के ऊपर वज्रपात मा हुआ। राज्य की अधिकारिणी एडवर्ड की मगी बहन मेरी थी। अतः जेन ने विचार किया कि सरदार लोग मेरी से राज्य का सूत्र छीनकर उसे देना चाहते हैं । इस दशा में इंगलैंड की प्रजा उससे कभी प्रमन्न न रहेगी और उसको अवला समझ कर उस पर दया करना तो दूर रहा, उलटा वह उसे बिना अधिकार राज्य छीन लेने वाली अन्यायी स्त्री समझेगी। इन बातों का विचार करके उसे इतना दुख हुआ कि वह अचानक बीमार हो गई । इसलिए उसे उसके घर से दूसरी जगह जल-वायु बदलने के लिए ले जाना पड़ा। 10 जुलाई 1583 ईसवी को एक सुन्दर नाव पर बिटलाकर सरदार लोग लेडी जेन को 'लन्दन-टावर' नामक स्थान में ले गये। वहां उसे बड़े समारोह के माथ उन्होंने गजतिलक करना चाहा। उसके पिता और ससुर को, इस समय, परमानन्द हो रहा था; परन्तु जेन ग्रे के दुग की सीमा न थी। रोते-रोते उसके नेत्र लाल हो गये थे और मुंह फीका पड़ गया था । नाव में उनके पास उसका पति बैठा हुआ धीरज देता था; परन्तु पनि के आश्वासन को सुनकर उसे अधिक रंज होता था। जब लेडी जेन मण्डप में प्रवेश किया जहां उसे तिलक होने वाला था, तब सब सरदारो ने उसका अभि- वादन किया-उसके सामने सिर झुकाया । इस दशा को देख कर जेन ग्रे के सुकुमार कपोल पहले से भी अधिक लाल हो गये; उसका हृदय धड़कने लगा; उसकी घबराहट बढ़ने लगीं। ज्यों ही सब अमीरों और अधिकारियों ने उसे इंगलैंड की रानी कह कर पुकारा और उसकी अधीनता में रहना स्वीकार किया त्यों ही जेन ग्रे को मूर्छा आ गई। वह पहले ही से बीमार थी; इन सब विडम्बनाओं को वह अधिक गहन न कर सकी। वह मूर्छित होकर भूमि पर गिर पड़ी और जागने पर बिलख बिलख कर रोने लगी । बड़ी कठिनता से उसने अन्त में अपने को संभाला और घुटनों के बल बैठकर ईश्वर से उसने यह प्रार्थना की कि यदि इंगलैंड के सिंहासन पर बैठने का मुझे अधिकार है तो हे परमेश्वर तू मुझे अपनी तरह न्यायपूर्वक गज्य करने का सामर्थ्य दे। इंगलैंड के राज्य की अधिकारिणी मेरी थी। इसलिए प्रजा जेन ग्रे के राज्य पाने के प्रतिकूल थी। इमका फल यह हुआ कि लन्दन की प्रजा ने जेन ग्रे को रानी न स्वीकार किया । थोड़े ही दिनों में मेरी के पक्ष वालों ने राज्य का सूत्र अपने हाथ में कर लिया और लेडी जेन ग्रे को कारागार में डाल दिया। उसका पति भी उससे पृथक् कर दिया गया । जब जेन ग्रे के पिता ने आकर उससे कहा कि वह रानी नहीं रही तब उसने उत्तर दिया कि मैं केवल अपने माता-पिता की आज्ञा से गद्दी पर बैठी थी। मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि यद्यपि मेरी इच्छा न थी तथापि आपकी आज्ञा का पालन करने में मैंने बड़ा भारी अपराध किया है । अतः अपने अपराध का दण्ड भोगने के लिए मैं सब प्रकार तैयार हूँ।