पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२४२

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हर्बर्ट स्पेन्सर यह संसार प्रकृति और पुरुष का लीला-स्थल है । बिना इन दोनों का संयोग हुए संमार क्या कुछ भी नहीं बन सकता । संसार में दृष्टादृष्ट जो कुछ है प्रकृति का खेल है; पर उस खेल का दिखाने वाला पुरुष है। प्रकृति का दूसरा नाम पदार्थ है और पुरुष का दूसरा नाम शक्ति। जितने पदार्थ हैं सबमें कोई न कोई शक्ति विद्यमान है। पानी से भाफ, भाफ से मेघ और मेघों से फिर पानी । मई से सूत, सूत से कपड़े और कपड़ों से फिर रुई । बीज से वृक्ष, वृक्ष से फूल, फूल से फल और फल से फिर बीज । इसी तरह संसार में उलट-फेर लगा रहता है और प्रत्येक पदार्थ में व्याप्त रहने वाली शक्ति-विशेष इसका कारण है। जब से सृष्टि हुई तब से प्रकृति-पुरुष का झंझट जो शुरू हुआ तो अब तक बराबर चला जा रहा है । यदि प्रकृति निर्बल और पुरुष प्रबल हो जाता है तो उसे विद्वान् लोग उत्क्रान्ति कहते हैं और इसकी विपरीत घटना को अपक्रान्ति । संसार में जितने व्यापार हैं मबका कारण इस उत्क्रान्ति और अपक्रान्ति ही के आघात-विघात है। जिन नियमो-जिन सिद्धान्तो-के अनुसार यह सब होता है उनकी विवेचना करने वालों का नाम तत्त्वदर्शी है। ऐसे तत्त्वदर्शियों के शिरोमणि हर्बर्ट स्पेन्सर का संक्षिप्त चरित सुनिए। इंगलैंड के डर्बी नामक शहर में 27 एप्रिल 1820 को स्पेन्सर का जन्म हुआ। उमका पिता वहाँ एक मदस्से में अध्यापक था और चचा पादरी था । खर्च अधिक था। स्कूल की नौकरी से जो आमदनी होती थी उससे काम न चलता था। इससे स्पेन्सर का पिता लड़कों के घर जाकर पढ़ाया करता था । इसमें अधिक मिहनत पड़ती थी, जिसका फल यह हुआ कि वह बीमार हो गया और मदरसे से उसे इस्तीफ़ा दे देना पड़ा । जब उसकी तबीयत कुछ अच्छी हुई तब उसने कलावत्तू की डोरियां तैयार करने का एक कारखाना खोला। उसमें उसे नुक़मान हुआ । जिसने जन्म भर अध्ययन और अध्यापन किया उससे इस तरह के काम भला कैसे हो सकते हैं ? अन्त में कारखाना बन्द करना पड़ा । तब स्पेन्मर के पिता ने अपना एक मदरमा अलग खोल लिया। इसमें उसे कामयाबी हुई और घर का खर्च अच्छी तरह चलने लगा। हर्बर्ट स्पेन्सर लड़कपन में बहुत कमजोर था। सात-आठ वर्ष की उम्र तक उसने कुछ भी नहीं पढ़ा-लिम्वा । उमकी कमजोरी देखकर उसका पिता भी कुछ न कहता था। उमने अपने लड़के पर पढ़ने लिखने के लिए कभी दबाव नही डाला । हर्बर्ट को छोटी ही उम्र में विज्ञान का चमका लग गया था। वह दूर-दूर तक घूमने निकल आया करता था और तरह-तरह के कीड़े-मकोड़े और पौधे लाकर घर पर जमा करता था। इसी को उमकी विज्ञान-शिक्षा का प्रारम्भ समझिए । पिता इन बातों से अप्रसन्न न होता था। वह उलटा पुत्र को उत्साहित करता था। उसका कहना था कि जो बात तुम्हें अच्छी लगे वहीं करो। इसी से स्पेन्सर कीट-पतंगों के रूपान्तर और पौधों में होने वाले फेरफार देखने -