पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२४३

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हर्बर्ट स्पेन्सर | 239 ही में कई वर्ष तक लगा रहा। स्पेन्सर ने किसी मदरसे में शिक्षा नहीं पाई। घर ही पर स्पेन्सर के पिता और चचा ने उसे शिक्षा दी । हाँ, कुछ दिन के लिए वह एक मदरसे में ज़रूर गया था । वहाँ उसके क्लास में 12 लड़के थे । वहाँ पाठ सुनाने का समय आने पर हर्बर्ट बेचारे को एक- दम सब लड़कों के नीचे जाना पड़ता था । पर गणित इत्यादि वैज्ञानिक शिक्षा का समय आते ही वह सबसे ऊपर पहुँच जाता था। प्रायः प्रति दिन ऐसा ही होता था । स्पेन्मर का पिता अच्छा विद्वान् था और चचा भी। इससे वे दोनों जब मिलते थे तब किमी न किसी गम्भीर शास्त्र-विषय की चर्चा ज़रूर करते थे। उनकी बातें स्पेन्सर ध्यान से सुनता था और उनसे बहुत फ़ायदा उठाता था। पुत्र की प्रवृत्ति वैज्ञानिक विषयों की ओर देख- कर पिता ने उसे और भी अधिक उत्तेजना दी और अपनी मारी विद्या-बुद्धि खर्च करके पुत्र के हृदय पर शास्त्र के मोटे-मोटे सिद्धान्त खचित कर दिये । इममे यह न समझना चाहिए कि स्पेन्सर को पुस्तकावलोकन से प्रेम न था । प्रेम था और बहुत था। परन्तु विशेष करके वह शास्त्रीय विषयो ही की पुस्तकें देखा करता था। स्पेन्सर को पहले पहल 'सैंडफ़र्ड ऐड मर्टन'(Sandford and Merton)नाम की किताव पढ़ाई गई । उसे स्पेन्सर ने बड़े चाव से पढ़ा । कुछ दिन में उसे पढने का इतना शौक बढ़ा कि दिन-दिन रात-रात भर उसके हाथ से किनाव न छूटती थी। उसकी माँ न चाहती थी कि वह इतनी मिहनत करे, क्योंकि वह बहुत कमजोर था । इससे रात को वह अक्मर स्पेन्सर के कमरे में मोने के पहले यह देखने जाया करती थी कि कही वह पढ़ तो नही रहा । उसे आतो देख स्पेन्सर मोमबत्ती को गुल करके चपचाप लेट रहता था, जिसमें उसकी माँ समझे कि वह सो रहा है । पर उसके चले जाने पर वह फ़िर पढ़ना शुरू कर देता था। कोई 11 वर्ष की उम्र में स्पेन्मर की कमजोरी जाती रही । वह मबल हो गया। वह पढ़ता भी था और घूमता-फिरता भी था। इससे उसके दिमाग़ पर अधिक बोझ नहीं पड़ा और इसी से उसके शरीर में बल भी आ गया । स्पेन्सर बड़ा निडर और साहमी था । एक दफ़े वह अपने चचा के घर से अकेला अपने घर पैदल चला आया। पहले दिन वह 48 मोल चला, दूसरे दिन 47 मील | बिना सबूत के स्पेन्सर किसी की बात न मानता था। चाहे जो हो, जब तक वह उसकी बात की सचाई को सबूत की कसौटी पर न कम लेता था, या खुद नजरिवे से उसकी सचाई को न जान लेता था, तब तक कभी उस पर विश्वास न करता था। यह विलक्षणता उसके लडकपन ही से थी। यह आदत उसकी मरने तक नही छूटी। इसी के प्रभाव से उसने पूर्व-तत्त्व ज्ञानियो के सिद्धान्तो को चुपचाप न मानकर सबकी परीक्षा की और उनके खण्डनीय अश का कठोरता-पूर्वक खण्डन किया। सोलह-सत्रह वर्ष की उम्र तक स्पेन्सर को घर पर ही शिक्षा मिलती रही। इतने दिनों में उसने गणित-शास्त्र, यन्त्र-शास्त्र, चित्र-विद्या आदि में अच्छा अभ्यास कर लिया। स्पेन्सर को संस्कृत की समकक्ष लैटिन और ग्रीक आदि पुरानी भाषाओं से बिलकुल प्रेम न था और विश्वविद्यालय में इनको पढ़े बिना काम नहीं चल सकता । इससे वह किसी