पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२४८

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244 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली उसमें विख्यात विद्वान् एमरसन की जगह पर कुछ काल तक यह निबन्धकार रहा । परन्तु वह बड़ा ही निस्पृह और स्वाधीनचेता था। योरप, और अमेरिका के-विशेष करके इंगलैंड के-विश्वविद्यालयों ने उसे दर्शनशास्त्र की शिक्षा देने के लिए कितने ही ऊँचे- ऊँचे पद देने की इच्छा प्रकट की; परन्तु उसने कृतज्ञतापूर्वक उन्हें अस्वीकार कर दिया। स्वाधीन रहकर अपनी सारी उम्र उसने विद्या-व्यासंग में खर्च कर दी और अपने अभूत- पूर्व तत्त्वज्ञानपूर्ण ग्रन्थों से अपना नाम अमर करके संसार को असन्त लाभ पहुँचाया । स्पेन्सर की उम्र के पिछले पाँच-सात वर्ष अच्छे नहीं कटे । वह अकमर वीमार रहा करता था। कोई दम-पन्द्रह वर्ष पहले से वह एकान्तवास करने लगा था। वह बहुत कम मिलता-जुलता था। अपने मांसारिक काम ममाप्त करके वह मृत्यु की राह देखने लगा था । अन्त में वह आ गई और 84 वर्ष की उम्र में, 8 दिसम्बर 1903 को, वह उसे इस लोक से उठा ले गई। पर उसका अक्षय्य यश, पूर्ववत्, किंबहुना उममे भी अधिक, प्रकाशित हो रहा है । उसे ले जाने या कम कर देने की किसी में शक्ति नहीं। म्पेन्सर ने लिख रक्खा था कि मरने पर मेरा मृत शरीर जलाया जाय, गाड़ा न जाय। ऐमा ही किया गया और उसका नश्वर पंचभूतात्मक शरीर अग्नि के संस्कार से फिर पचभूतो मे जा मिला। शव-दाह की प्रथा जिन लोगो मे नही है उन्हे स्पेन्सर के उदाहरण पर विचार करना चाहिए । इस देश के निवामियो मे श्यामजी कृष्ण वर्भा पहले मज्जन है जिन्होंने आक्सफर्ड विश्वविद्यालय से एम० ए० की पदवी पाई है । स्पेन्सर की श्मशान-क्रिया के ममय वे वहाँ उपस्थित थे । थोड़ा सा समयोचित भाषण करने के बाद उन्होंने 15 हजार रूपया खर्च करके स्पेन्मर के नाम से एक छात्रवृत्ति नियत करने का निश्चय किया। इस निश्चय का पालन भी कर रह है। इंगलैंड के इम ब्रह्मर्षितुल्य वेदान्त-वेत्ता का इम तरह भारतवर्ष के एक विद्वान् द्वारा आदर होना कुछ कौतूहलजनक अवश्य है । सच है, दर्शन-शास्त्र की महिमा यह बुड्ढा भारत अब भी खूब जानता है। स्पेन्मर शान्तिभाव को बहुत पसन्द करता था । वह युद्ध के खिलाफ़ था । बोर युद्ध का कारण उस समय के उपनिवेश-मन्त्री चेम्बरलेन साहब थे । उन पर, उनके इस अनुचित काम के कारण, स्पेन्मर ने अप्रसन्नता प्रकट की थी। उसके मरने के बाद उसकी जो एक चिट्ठी प्रकाशित हुई है उसमें उमने जापान को शिक्षा दी है कि यदि तुम आना भला चाहते हो तो योरप वालो से दूर ही रहो और योग्प की स्त्रियो से विवाह करके अपनी जातीयता को बरबाद न करो। नहीं तो तुम किमी दिन अपनी स्वाधीनता खो बैठोगे। हर्ट स्पेन्मर ने यद्यपि पाठशाला में शिक्षा नहीं पाई और यद्यपि वह मस्कृत की तरह की ग्रीक और लैटिन इत्यादि भाषाओ के खिलाफ़ था, यहाँ तक कि वह ग्रीक भापा का एक शब्द तक नहीं जानता था, तथापि वह बहुत अच्छी अंगरेजी लिखता था और आने मन का भाव बड़ी ही योग्यता में प्रकट कर सकता था। उसकी तर्क-शक्ति अद्वितीय थी। जिस विषय का उगने प्रतिपादन किया है, जिम विषय में उसने बहम की है, उसे सिद्ध करने में उसने कोई बात नही छोड़ी। उसकी प्रतिपादन-शक्ति ऐसी बढ़ी- चढ़ी थी कि जो लोग उसकी राय के खिलाफ़ थे उनको भी उसकी तर्कना सुनकर उसके -