पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२६१

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फ़ारस के शाह मुज़फ़्फ़रुद्दीन / 257 बैठक और याम्योत्तर-वृन ठोस सोने के है; उन पर लाल जुड़े हुए है। उसकी भूमध्य- रेखा हीरो की है । देशो की मीमायें दिखलाने मे लाल लगाये गये है; 'इग्न्नु फारम के लिए हीरो से काम लिया गया है । जहाँ समुद्र है वहाँ नीलम जड़े हुए है। इतने रन्न मानो काफी नही समझे गये, इमलिए गोले की जड़ में, तीम तीन अशरफी के बराबर वजनी बड़े बड़े सोने के सिक्के, इकठे कर दिये गये है । इम ममय फ़ारस के नरेश की सम्पनि का जब यह हाल है तब दारा, जरकश, ग्बुमरो, शाहरुख, शाहअब्बाम और नादिरशाह के समय में, न मालूम, क्या हाल रहा होगा। तले-नाऊम एक अलग कमरे में है। उसे नादिरशाह देहली मे लूट ले गया था । औरगजेब के समय मे देवरनियर नामक एक फरामीमी इस देश में आया था । उमने इस तखन को देवक इमका वर्णन लिखा था। उमी वर्णन का माराण देकर हम इस लेख को समाप्त करेंगे । मुनिए- "तख्ते-ताऊम 6 फुट लम्बा और 4 फुट चौडा है। उसमें 4 पाये है, वे कोई 25 इंच ऊंचे है । उम पर 12 खम्भ है, जो तीन तरफ से, उसके ऊपर, शामियान को थांभे है । तखन के पाये और पटियों पर मोने का पत्र है; उस पर अद्भुत काम है शोर बेगुभार होरे. लाल और पुखगज जड़े हुए हैं। हर एक पाये पर वीच मे एक लाल है। उनकी तराश निकोनी है। उसके चारो ओर चार पुखगज जड़े है । इसी तरह नब पटियों पर. थोडी थोडी दूर पर, लाल और पुखराज पच्ची किये गये है । और, एक जगह पुवगजो के बीच मे लाल है तो दूसरी जगह लालो के बीच मे पुखराज । पुखराजो और लालो के बीच में जो जगह खाली है उस पर हीरे जड़े हुए है। कही कहो मुवर्ण-वचिन मोती भी हैं । तख्त पर चढ़ने के लिए एक तरफ़ जीना है, उस पर कई सीड़ियाँ है । एक तलवार एक दाल, एक कमान, तीरो मे भग हुआ एक तरकम, ये मव तख्त से लटकते है । ये शस्त्र और जीने की मीढ़ियाँ सब जवाहिरात से टॅकी है। छत्र के नीचे का हिस्मा हीरो और मोतियो से जड़ा है। उसके चारो ओर मोतियों की झालरे हैं। तख्त के पीछे जो तकिया है उस पर इतने जवाहिरात जड़े है कि उनको गिनने के लिए बहुत वक्त दरकार है । उस पर जो मोर बना है वह अत्यन्त अद्भुत है। उसकी दुम फैली हुई है और कई रंग के रनो से बनाई गई हैं। मोर का बदन सोने का है । उसकी छाती पर एक बहुत बड़ा लाल लगा है। छाती से एक तोते से भी अधिक वजनी एक पीले रंग का विलक्षण मोती लटकता है । इस मोर के दोनों तरफ़ रत्नमय दो मुलदस्ते हैं। मैं उनकी कान्ति और सुन्दरता नही बयान कर सकता, उसे बनाना तैमूर ने शुरू किया था और शाहजहां ने खत्तम किया । उसको बनवाने में एक करोड़ 70 लाख रुपया खर्च हुआ है।" फारस में जाकर तख्ते ताऊस की सूरत कुछ बदल गई है; परन्तु उसकी विलक्षणता वैसी ही बनी है। इस समय योरप के जौहरी उसकी कीमत 4 करोड़ के 'करीब कूतते हैं !!! इस अपार सम्पत्ति को छोड़ कर शाह मुजफ्फ़रुद्दीन परलोक को प्रस्थान कर गये । अब उसके मालिक उनके बेटे, मुहम्मदअली मिरजा, हुए हैं । [वे भी अब इस लोक में नहीं । अब तो फारस में प्रजासत्ताक राज्य है।] [रवरी, 1907 को 'सरस्वती' पकाशित ।चरित्र-विषम' में संकलित।]