पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२६५

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मुग्धानलाचाय्यं मृग्धानलाचार्य से मतलब डाक्टर मेकडॉनल से है । आप आक्सफ़र्ड में संस्कृत के प्रधान अध्यापक हैं। आपके विषय में एक नोट, मार्च 1907 की 'सरस्वती' में प्रकाशित हो चका है। उसमें आपकी संस्कृत-लिपि का फ़ोटो दिया गया है। जून 1907 की 'मरम्वती' में 'कालिदास का ममय' नामक जो लेख प्रकाशित हुआ है उसमें भी आपका उल्लेख है और आपकी रचित 'संस्कृत भाषा का इतिहास' नामक पुस्तक की दो एक बातो की आलोचना भी है। कुछ समय हुआ, आप संस्कृत की जन्मभूमि भारत में भ्रमण करने आये थे । आप यहाँ कई महीने घूमे । अव आप अपने देश लौट गये हैं। आपका पूरा नाम है आर्थर ए०, मेकडॉनल। मेकडॉनल का संस्कृत-रूप आप ही ने 'मुग्धानल' बनाया है और उसके आगे 'आचार्य' भी आप ही ने जोड़ा है । आप एम०ए० (मास्टर आव आर्ट्स) है; इममे 'आर्ट्स के आचार्य हुए। और पी-एच० डी० (डाक्टर आव् फ़िलामफ़ी) है; इनसे फिलामफ़ी (दर्शन-शास्त्र) के भी आचार्य हुए। डाक्टर मेकडॉनल का जन्म मुजफ्फरपुर (तिरहुत) में हुआ था। वहाँ 11 मई 1854 को आपने जन्म लिया था। पर शिक्षा और दीक्षा आपने यहाँ नही पाई । जर्मनी के गाटिजन और इंगलैंड के आक्सफर्ड विश्वविद्यालयों में आपने ऊँचे दर्जे की गिक्षा प्राप्त की है। पुरानी जर्मन-भाषा, संस्कृत भाषा, और भाषा-व्युत्पनि-शास्त्र के अध्ययन और विचार में आपने सविशेष परिश्रम किया है । प्रधान-प्रधान आकर-ग्रन्थो मे एक परीक्षा आवमफ़र्ड में होती है। उसकी भी एक सर्वोच्च शाखा है। उसका नाम है 'आनर्म-कोर्स' । जो लोग उममें पास होते हैं वे विशेष सम्मान की दृष्टि से देखे जाते है। इस परीक्षा को पास करके आचार्य मुग्धानल ने चीनी, जर्मन और संस्कृत भाषा सम्बन्धी विश्वविद्यालय की छात्रवृत्तियाँ प्राप्त की। संस्कृत के प्रगाढ़ पण्डित मर मानियर विलियम्म का नाम पाठको ने सुना ही होगा। उन्हीं से आपने चार वर्षों तक वगवर संस्कृत पढ़ी है। जैसे आप संस्कृत के चूड़ान्त पण्डित हैं वैसे ही जर्मन के भी है। 1880 से 1899 तक कोई 20 वर्ष, आप आक्सफर्ड में जर्मन भाषा के अध्यापक थे। इस भाषा के अध्यापक नियत होने के 8 वर्ष बाद से संस्कृत-अध्यापन का भी काम आपको मिला । 1888 से 1899 तक आप संस्कृत के सहकारी अध्यापक भी रहे । इसके आगे आप मस्कृत के 'थाडन-प्रोफेसर' हुए। वाडन नाम के एक साहब बहुत मा रुपया जमा करके आक्मफ़र्ड मे सस्कृत पढ़ाने का प्रबन्ध कर गये हैं। इससे जो कोई उनकी नियत की हुई जगह पर काम करता है वह 'बाडन-प्रोफेमर' कहलाता है । आचार्य मुग्धानल इमी पद पर अधिष्ठित हैं । मुग्धानलाचार्य वेदो के बहुत बड़े ज्ञाता हैं । वैदिक साहित्य की नस-नस से आप वाकिफ़ हैं । बेनकी, रोट और मोक्षमूलर से आपने वेद पढ़े हैं। पश्चिमी दुनिया में