पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२६८

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264/ महावारप्रसाद द्विवेदी रचनावली में विवादांश अधिक है; इससे सोसायटी के जर्नल में नहीं छप सकता। अच्छा फैसला हुआ । आचार्य जी कुछ कहें कह सकते हैं; जो कुछ छपावें छपा सकते हैं। और लोग उनकी बराबरी किस कानून की रू से करने का हक रखते हैं ? खैर, लाचार होकर, श्रीधरजी ने अपना उत्तर पुस्तकाकार छपाया और उसका विपुल वितरण किया। आचार्य की आज्ञा है कि जो लोग विलायत से संस्कृत पढ़कर आवेंगे वे हमारे धर्मशास्त्र की पुस्तकें खुद ही पढ़कर न्याय खूब कर सकेंगे। गुण-दोष-विवेचना-शक्ति- हीन पुराने ढर्रे के पण्डितों से पढ़ने से जो बातें उन्हें न सूझेंगी वे विलायत से पढ़कर आने पर आप ही आप सूझ जायँगी। हम कहते हैं कि जो विद्वान् एक सतर तक नही संस्कृत नहीं लिख सकते और जो इस देश में कदम रखते ही संस्कृत बोलना भूल जाते हैं उनके छात्र मनु और याज्ञवल्क्य की स्मृतियाँ क्या समझेंगे, खाक | पहले उनके गुरु तो अच्छी तरह समझ लें। ये योरप के संस्कृत-विद्वान् वैदिक साहित्य में चाहे भले ही भारतवासियों से बढ़ जायं, क्योंकि वेदाध्ययन के लिए वहाँ विशेष सुभीता है; परन्तु और बातों में यहाँ वालो से अधिक विज्ञता प्राप्त करने की आशा रपना व्यर्थ है। यहाँ किमी कालेज के अंगरेजी भाषा के प्रोफ़ेमर को यदि एक लाइन भी अँगरेजी लिखना न आवे, या वह अपने मन का भाव अपने अंगरेज़ अफ़सर के सामने अंगरेजी में न प्रकट कर सके, तो वह उसी दिन निकाला जाय। पर गाटिंजन और आक्सफ़र्ड के संस्कृता- चार्य यदि एक वाक्य भी संस्कृत में शुद्ध न लिख सके तो भी कुछ हानि नही; तो नी वे भारत के पण्डितों को नालायक़ ठहराने के लायक समझे जायें; तो भी वे सस्कृत के बड़े- बड़े छ:-छ: रुपये कीमत के व्याकरण लिख डालें। आचार्य मुग्धानल के गुरुवर सर मानियर विलियम्स द्वारा सम्पादित कालिदास के 'शकुन्तला' नाटक की एक आवृत्ति है । उसमें-"किमत्र चित्रं यदि विशाखे शशाङ्क- लेखामनुवर्तेते" इस पंक्ति का अर्थ गुरुवर ने किया है-“यदि चन्द्रमा के माथ मयोग होने के लिए विशाखा इतनी उत्सुक है तो शकुन्तला का चन्द्रवंशी दुष्यन्त के माथ संयोग की कामना करना कोई आश्चर्य की बात नहीं। शायद दुष्यन्त ने अपनी तुलना चन्द्रमा से और शकुन्तला की विशाखा से की है।" नो क्या कालिदाम ऐसे अमक़ थे कि दुष्यन्त को चन्द्रमा बनाने के लिए, पुल्लिग 'शशाङ्क' शब्द को स्त्रीलिग 'गशाङ्कलेखा' करना पड़ा ? और क्या अकेली एक शकुन्तला को विशाखा बनाने के लिए 'विशाखा' शब्द को द्वि-वचन मे रखना पडा ? माहब ने कालिदाम का काव्य पढ़ डाला और अपने मैकड़ो छात्रों को पढ़ा भी डाला; पर आपके ध्यान में यह न आया कि उपमा और उत्प्रेक्षा आदि अल कागे मे कालिदास ने लिग और वचन की एकता का बड़ा खयाल रखा है। हाय हाय । कालिदाम ने कोई बड़ा ही गृकतर पाप किमी जन्म में किया था; उसी का प्रायश्चित्त गुरुयर मानियर विलियम्म द्वारा आक्मफ़र्ड उन कराया गया है। विशाखा नक्षत्र में दो नारे है। इमी मे इस शब्द को द्वि-वचन में रखकर शकुन्तला की दोनो मन्द्रियो को वि ने विशाना बनाया है। रही शशाङ्कलेखा सो उमसे मतलब शकुन्तला से है । प्रियवदा और अनमूया नामक उमकी दोनों सखियो के द्वारा शकुन्तला ही का अनुवर्तन करने की -