पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२८१

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हबशीराज मैन्यलिक / 277 यथेच्छाचारी था । जहाँ जी आता था वहाँ वह घूमा करता था; भोजन भी वह मनमाना करता था। एक दिन एक साहब के बंगले पर वह पधारा। माहब बहादुर मैन्यलिक महागज की राजधानी देखने और उनसे मिलने गये थे। शाम को माहब का मेज़ लगाया गया था और उस पर खाने के पदार्थ चुने गये थे। इसी समय गजेन्द्रदेव वहाँ जा गरजे। उन्हें देखते ही साहब बहादुर के बावर्ची को ग़श आ गया। उसे जमीन पर मुला- कर गजराज भीतर घुसे । वहाँ जो कुछ मेज पर था एक मिनट में अपनी शुण्डादण्ड से उदरस्थ कर लिया। परन्तु वहाँ से निकलने में आपने जल्दी की। इसलिए बंगले का दरवाजा टूट कर आपके सिर पर रह गया। वैसे ही आप, सिर पर ऊँची टोपी मी लगाये, बाहर निकल आये। जब मैन्यलिक महाराज ने यह ममाचार सुना तव आप इतना हँसे कि आंखो से आँसू निकलने लगे। कुछ दिनों में आपने इस गुण्डे गज को फ्रांस के मभापति को उपहार मे दे डाला। इस समय वह पेरिस की हवा खा रहा है । अपने को सभ्य मानने वाले लोग मैन्यलिक को चाहे असभ्य भले ही कहे; परन्तु जिन बातो को हम लोग अत्यन्त निर्दयता से भरी हुई देखते हैं वे मैन्यलिक और उनकी प्रजा को न्यायसंगत और तुच्छ जान पड़ती हैं । हवश में चोरों और बदमाशों का एक हाथ या एक पैर काट दिया जाता है; परन्तु वे चूं तक नहीं करते; चुपचाप और बड़े साहम से इस कठोर दण्ड को मह लेते हैं । यहाँ तक कि घावों पर उबलता हुआ तेल जब डाला जाता है तब उनके मुंह से आह नही निकलती। परन्तु यह हरगिज़ न समझिए कि मैन्यलिक महाराज निर्दयी है। उनके विशाल हृदय में दया का दरिया भी बहा करता है। इसका एक उदाहरण सुनिए। इटली वालों ने जब आपसे शत्रुता की तब उनका एक दल मक्पलें नाम के किले में था। मैन्यलिक के सेनापति ने 15,000 सेना लेकर उनको घेर लिया। वे लोग इस घेरे में बहुत दिन पड़े रहे । जब अन्त में बिना जल वे मरने लगे तब उन्होंने 3000 आदमी मैन्यलिक के सेना-नायक के पास भेजे। वह उनसे अच्छी तरह पेश आया और खिला-पिला कर उनको उनके ईप्सित स्थान को उसने भेज दिया। यह देख कर इटली वालो ने मन्धि की प्रार्थना की। वे किले के वाहर आये । मैन्यलिक स्वयं उनसे मिले। उनसे आपने कहा -"तुमने न कभी मुझ पर मिहरबानी की, न मेरे आदमियों पर । तुमने अपना वचन भी भंग किया और शत्रुता करके शस्त्र भी उठाया। तथापि मैं नहीं चाहता कि दुनिया यह कहे कि क्रिश्चियन लोग यहाँ कुत्ते की मौत मरें। इससे अब तुम चुपचाप यहां से चले जाओ।" इस प्रकार के दया-दान के बोझ से सिर झुकाये हुए वे लोग वहाँ से रवाना हुए। सुनते हैं सवारी के लिए उनको खच्चर तक दिये गये थे। राजधानी में मैन्यलिक ने एक ऊंचा मीनार बनवाया है। उस पर आप कभी कभी दूरबीन लगाकर शहर का दृश्य देखा करते हैं। यदि कहीं अन्याय होता हुआ आप देखते हैं तो तुरन्त अन्यायी पकड़ कर आपके सम्मुख लाया जाता । वहाँ पर तत्काल ही उसको दण्ड मिलता है। आपके अधीन कई छोटे छोटे राजा हैं। यदि वे कोई अपराध करते हैं तो हबशीराज उनसे वैसा ही बर्ताव करते हैं जैसा कड़े दिल वाला बाप कभी कभी अपने बेटे के साथ करता है। मैन्यलिक उसकी खबर त से लेते हैं। आपमें चुस्ती