पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/२९४

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अलबरूनी प्राचीन काल से लेकर अब तक न मालूम कितने ग्रीक, रोमन, चीनी, अरब, तुर्क, फ्रेंच और अंगरेज़ आदि विदेशो भारतवर्ष में आये हैं। उनमें से सैकड़ों ने भारतवर्ष-विषयक पुस्तकें भी लिखी हैं। भारतवर्ष के प्राचीन इतिहास का प्रायः अभाव है । अतएव ये पुस्तकें इस देश का इतिहास संकलित करने में बड़ी सहायक हुई हैं । इस हिसाब से ये ग्रन्थ बड़े ही उपयोगी हैं । परन्तु इनमें से अधिकांश ग्रन्थ भ्रमात्मक और ईाटेप-पूर्ण हैं। कारण यह कि लेखकों ने बिना अच्छी तरह खोज किये ही जो कुछ उनकी समझ में आया, लिख मारा है। हां, कुछ लेखक ऐसे भी हैं जिन्होंने गहरी खोज के बाद उदारतापूर्वक अपने ग्रन्थ लिखे हैं । इतिहासकार अलबरूनी इसी श्रेणी के लेखकों में थे। अलबरूनी के जीवन का इतिहास नितान्त संक्षिप्त है। वर्तमान खीवा नगर के निकट, सन् 973 ईसवी में, उनका जन्म हुआ था। उनका असली नाम अबूरेहान था । बाल्यकाल से ही उन्होंने गणित, ज्योतिष और विज्ञान की शिक्षा पाई थी। धीरे-धीरे उन्होंने इन विषयों में अच्छी पारदर्शिता प्राप्त कर ली थी। अलबरूनी की जन्मभूमि प्राचीन वाल्हीक (बलख) में राज्य के अन्तर्गत थी। वहाँ इमलाम के अभ्युदय के पहले बौद्ध धर्म का प्रचार था । युवावस्था में अलबरूनी खीवा-नरेश के मन्त्री हो गये । इम दशा में उन्होंने अपने देश को स्वाधीन बना रखने के लिए बड़ी चेष्टा की। परन्तु 1017 ईसवी में ग़जनी के दिग्विजयी सुलतान महमूद ने खीवा की स्वाधीनता छीन ली और राज्य-परिवार के माथ अलबरूनी को भी कैद करके गजनी भेज दिया । वहाँ गज. परिवार की बडी दुर्दशा हुई । परन्तु अलबरूनी के पाण्डित्य का खयाल करके महमुद ने उन पर कृपा की और उन्हें मुलतान भेज दिया । मुलतान में अलबरूनी कोई तेइस वर्ष रहे । यह समय उन्होंने संस्कृत सीखने और ज्ञानालोचना करने में बिताया। इसके बाद जब मुलतान महमूद की मृत्यु हुई तब उन्होंने 'इंडिका' की रचना की । 'इंडिका' किसी ग्रन्थ विशेष का अनुवाद नही; किन्तु मुल ग्रन्थ है। यह बड़ी दुरूह अग्बी भाषा में लिखा गया है। माधारण अरवी जानन- वाला इसे नहीं समझ सकता। परन्तु पाश्चात्य पण्डितों की कृपा से अब उसका अनुवाद अनेक योरपियन भाषाओं में हो गया है। भारतीय माहित्य, दर्शन, गणित, ज्योतिष और धर्मशास्त्र आदि का अध्ययन तथा लोकाचार-पर्यवेक्षण करके अलबरूनी ने भारतीय शिक्षा, दीक्षा, सभ्य ता और सदाचार के मम्बन्ध में जो नथ्थ संग्रह किया या उसी को वह 'इंडिका' में लिग्न गया है। 'इंडिका' के सिवा अलबरूनी ने ऐसे और भी ग्रन्थ रचे है, जिनमे उमने भारतीय गणित और ज्योतिष की आलोचना की है। अलबरूनी के इन सब ग्रन्थों में पाण्डित्य कूट-कूटकर भरा हुआ है । अब भी बड़े