पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३०६

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302 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली किसानों से मेल बढ़ाया गया हैं। मुक्ति-फ़ौज के कितने ही सैनिक देहात में रहने और वहाँ दुकानदारी करने लगे हैं । भारत की औद्योगिक उन्नति की तरफ भी इस फ़ौज का ध्यान है। सैकड़ों करघे जुलाहों को कम मूल्य पर दिये गये हैं और कपड़ा बुनना सिखलाने के लिए कितनी ही पाठशालायें भी खोली गई हैं। कैदियों और अन्य जरायम- पेशा जातियों के सुधार में इस फ़ौज को अच्छी सफलता प्राप्त हुई है। दुभिक्ष के समय भी मुक्ति-फौज वालों ने बुभुक्षित लोगों को भोजन तथा सस्ते भाव पर अन्न देकर बड़ा काम किया है। ये लोग देशी वेश ही में रहते हैं। इसी से ये इतना काम भी कर सके हैं। 1890 में जनरल बूथ ने 'In darkest England and the way out' नाम की पुस्तक प्रकाशित की। इस पुस्तक में उन्होंने पतित लोगों की अवस्था सुधारने के कितने ही उपाय बतलाये। लोग उनका काम तो देख ही चुके थे; उनके प्रस्तावों को पढ़ते ही धड़ाधड़ चन्दा दे चले। थोड़े ही दिनों में पन्द्रह लाख रुपये मिल गये । काम आरम्भ हो गया । स्थान स्थान पर आश्रय-हीन लोगों के लिए सेवाश्रम खोल दिये गये। मुक्ति-फ़ौज द्वारा सुधारे गये पतित लोगों के निवास के लिए भी प्रबन्ध किया गया । समुद्र के किनारे और अन्य गैर-आबाद स्थानों में वे बसा दिये गये। आश्रयहीन और पतित लोगों में मुक्ति-फ़ौज ने जो काम किया उसका अनुमान इस बात से भली भांति किया जा सकता है कि अकेले 1909 में, 6425 आदमियों ने फौज की शरण ली और 2559 स्त्रियों और लड़कियों ने सेवाश्रम में स्थान पाया। शरण में रहने वाले लोगों का धर्म और सदाचरण की शिक्षा दी जाती है और उनसे फ़ौज द्वारा संचालित कारखानों में काम लिया जाता है। जनरल बूथ शायद ही इतने बड़े काम को अकेले कर सकते यदि उन्हें अपने ही जैसे दृढ़ विश्वासी और निरन्तर परिश्रम करने वाले सच्चे हृदय के साथी न मिलते। उनकी धर्मपत्नी केथराइन बूथ ने भी इस काम में उनका साथ दिया। कहा तो यहाँ तक जाता है कि यदि देवी केथराइन आरम्भ में दरिद्रता का सामना करती हुई अपने पति की सहायता न करतीं तो आज संसार में मुक्ति-फौज का अस्तित्व ही न होता। इसमें सन्देह नहीं कि श्रीमती केथराइन अन्त समय तक मुक्ति-फौज का काम बड़े उत्साह से करती रहीं। वे इस आन्दोलन की एक स्तम्भ समझी जाती थीं। 1890 में उनका देहान्त हुआ। उमसे मुक्ति-फ़ौज के काम को बड़ा भारी क्षति पहुँची । अभी बूथ इस धक्के से सँभलने भी न पाये थे कि उनके ऊपर और भी कुटुम्ब-सम्बन्धिनी विपत्तियाँ टूट पड़ीं। उनकी एक लड़की रेल से कट गई। उनका दूसरा पुत्र उनसे लड़ कर अमेरिका पहुँचा वहाँ उसने अपने पिता के ढंग का एक नया दल बनाया। इन सब पारिवारिक दुखों को बूथ बड़े साहस से सहन करते और निरन्तर अपना काम करते रहे। जनरल बूथ बड़ी ही सादगी से रहते थे। वे आहार और विहार की उचित सीमा का बहुत खयाल रखते थे। वे निरामिष-भोजी थे। शराब और तम्बाकू वे न पीते थे । उनके जितने काम थे सब नियत समय पर होते थे। नियमपूर्वक रहने के कारण ही