पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३१४

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310/महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली शाह फ़ारस की आमद अब हर लमहा उम्मेदवारिये दीदारे फ़रहत आमारे शहर-यारे कामगार थी। कभी खबर उड़ती थी कि अब रेलगाड़ी शाही क़रीब आन पहुंची। बस कि दर जाने फ़िगारम चश्मे बेदारम तुई हर कि पैदा मी शवद अज दूर पिन्दारम तुई। बावजूद गरमी और इन्तिज़ारी के एक तरह की चहल और जिन्दादिली सभों के दिलों पर छा रही थी कि एकाएक शिल्लक सलामी क़िलै लन्दन से बमुजर्रद छूने नाफे लन्दन के दनादन दग़ने लगीं। अब कोई दक़ीक़ा की बात बाक़ी न रही। लेडियाँ मुअज्ज़ज़ महवश रश्केहूर, एकबारगी जैसे कोई कल को खींचता हो. उठ उठ खड़ी हुई कि ट्रेन शाही भी, जैसे कि मिहर अज़ मतले अनवार दर आयद, ताल हुई। रोजे इन्तिज़ार आखिर और शाने इज़ तिरार को सहर- दोबारा लब न कुशायद सदफ़ ब अबरे बहार, करीम सायले खुदरा ग़नी कुनद एकबार । एक हलचल सी हुई । हत्ता कि गाड़ियो के घोड़े भी टापे मारने लगे और सभों की आंखें नरगिसवार एक तरफ़ तरतीबवार जम गई। इटालियन आपेरा के तमाशे में शाह का जाना तो क्या देखते हैं कि मात सौ परीज़ाद गुलअन्दाम मिहर-चेहरा जुहरा-जबी माह- तावाँ व बुरशेदे-दख्शाँ उनपं शैदा है । हर एक पनी हाय जमुर्रद और मरवारीद और इल्मास टके लगाये हुए थी। ज्याये गयास में ऐसा मालूम होता था कि हजारो माहताब निकले है। जो जो राग और स्वाँग और करतब और तमाशे दिखलाये कि बादशाह और हमराही हैगन हो गये । इलाही यह ख्वाब है । ये सचमुच के आदमज़ाद हैं या परियों का अखाड़ा उनग है । ग्नुसूमन जब परियाँ तार के ज़ोर से मिस्न तायरों के उड़ती थीं यकायक बादशाह और सब हमराही के जवान से 'वाह', 'वाह' की सदा बलन्द हुई। अगर शिम्मा उमका बयान लिने तो कलम विशिकन, स्याही रेज़, काग़ज़ सोज़, दम दरकश का आलम हो। शाह की तारीफ़ में गाये गये अंगरेजी गीतों का पामर द्वारा किया गया फ़ारसी पद्य में अनुवाद अलबर्ट हाल (1) मुबारक मुबारक मलामत शहा, मुबारक मुवारक सलामत शहा, बुबी आमद अज़ मुल्के ईर्ग जमी, शहे नामवर बा जलाले मुबीं।