पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३१६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

312 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली बहुत हंसे । बादहू पूछा-'ई कारे मुरिस अज़ तरफ़ कीस्त ?' पामर-'फ़िदवी ख़ास मुर्रिस अजतरफ़ मलिक मुअज्जमा इंगलैंड अस्त व ई ओहदा मुखत्तस अज तरफ़ मलिका मायानस्त ।' शाह -'चन्द तलामिजा मीदारी?' पामर-'बिलफ़ैल हमा ब औताने खुद रफ्ता अन्द कि अय्यामे तातील अन्द ।' आला हज़रत निहायत खन्दै पेशानी से हँस हँसके कलाम फ़रमाते रहे और ज़रा गुरूर और नखवत का नाम नहीं । और मूरत से आसारे सुलतानी व रोवे कहरमानी और जहूर मकरमते जिल्ले सुबहानी पदीदार थे। सुब्हान अल्लाह ! क्या कहना है । हम लोग मुरख्खस हुए तो रोजनामचा-निगार ने हमारे नाम और निशान दर्ज नामच किये और दस्तख़त उसमें दर्ज करवाये । प्रशंसा-पत्र अब हम थोड़े से प्रशंसा-पत्रों का हिन्दी अनुवाद नीचे देते हैं, जो पामर को लोगों ने उनकी योग्यता पर मुग्ध होकर दिये थे । सैयद गलाम हैदर खां साहब का लिखा हुआ प्रशंसा-पत्र [1] एडवर्ड हेनरी पामर माहब के लिखे हुए अरबी, फ़ारसी और उर्दू के निबन्धों की भाषा की शुद्धता और सुन्दरता को पूर्णतया सिद्ध करने के लिए मैंने उनके निबन्धों को लखनऊ के उलमा, अध्यापकों और साहित्य-सेवियो की एक बड़ी सभा करके, 1 जून 1867 को, उसके सामने पेश किया। उन सज्जनों की सहायता से उन निबन्धो की भाषा की शुद्धता और मरलता पर विचार हुआ। अब मैं इस बात की तसदीक करता हूँ कि इन निबन्धों की भाषा बहुत ही शुद्ध और सुन्दर है और उनकी भाषा मे और उम भाषा में जो इस देश वाले काम में लाते हैं-भाव दरसाने, उपमा देने या शब्दों का प्रयोग करने में कोई अन्तर नहीं है। मैं इस बात की भी तसदीक करता हूँ कि पामर माहब को पूर्वोक्त तीनों भाषाओं मे पूर्ण पाण्डित्य प्राप्त है। (1) मैयद गुलाम हैदर, इन्न मुशी संयद मुहम्मद खाँ बहादुर । (2) नवलकिशोर, स्वत्वाधिकारी और मम्पादक 'अवध-अख़बार' (3) मैयद अली इब्न मैयद अहमद साहब, लखनऊ के शाही विश्व-विद्यालय के अध्यापक 1 [2] केम्बिज के सेंट जान्स कालेज के अध्यापक मिस्टर ई० एच० पामर मेरे मित्र हैं। कई साल तक उन्होंने मुझसे पढ़ा भी है। उनकी अध्ययनशीलता और विलक्षण बुद्धि पर