पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३२२

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318 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली उसे एक कमरे का कूड़ा झाड़ डालने को कहा और इस बात की परीक्षा ली कि वह शारीरिक मिहनत से घृणा तो नहीं करता । वह इस प्रवेश-परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ और वहीं विद्याभ्यास करने लगा। हैम्पटन स्कूल के अध्यक्ष (प्रिसपल) जनरल आर्मस्ट्रांग बड़े परोपकारी पुरुष थे। उनके प्रयत्न से यह स्कूल अमेरिका में बहुत प्रसिद्ध हो गया है। इन्हीं के पास रहने के कारण चार वर्ष में बुकर टी० वाशिगटन ग्रेजुएट हो गया। इस स्कूल में वाशिगटन ने जिन बातों की शिक्षा पाई उनका सारांश यह है- - "पुस्तकों के द्वारा प्राप्त होने वाली शिक्षा से वह शिक्षा अधिक उपयोगी और मूल्यवान् है जो सत्-पुरुषों के समागम से मिलती है।" 2-"शिक्षा का अन्तिम हेतु परोपकार ही है। मनुष्य की उन्नति केवल मानसिक शिक्षा से नहीं होती । शारीरिक श्रम की भी बहुत आवश्यकता है। श्रम से न डरने ही से आत्मविश्वास और स्वाधीनता प्राप्त होती है। जो लोग दूसरों की उन्नति के लिए यत्न करते हैं जो लोग दूसरों सुखी करने में अपना समय व्यतीत करते हैं-वही सुखी और भाग्यवान् हैं।" 3-"शिक्षा की सफलता के लिए कर्मेन्द्रिय, ज्ञानेन्द्रिय और अन्तःकरण (Hand, Head and Heart) की एकता होनी चाहिए। जिस शिक्षा में श्रम के विषय में घृणा उत्पन्न होती है उससे कोई लाभ नहीं होता।" वाशिंगटन स्कूल में पढ़ने और बोर्डिंग में रहने का खर्च न दे सकता था। इसलिए वह स्कूल में द्वारपाल की नौकरी करके और छुट्टी के दिनों में शहर में मजदूरी या नौकरी करके द्रव्यार्जन करता था। इस प्रकार स्वयं श्रम करके अपने आत्मविश्वास के बल पर उसने हैम्पटन स्कूल का विद्याभ्यासक्रम पूरा किया। उसका नाम पदवी-दान के समय माननीय विद्यार्थियों (Honour-roll) में दर्ज किया गया । शिक्षक का काम ग्रेजुएट होने के बाद वाशिंगटन अपने निवास स्थान, माल्डन, को सन् 1876 में लौट आया और वहाँ एक नीग्रो-स्कूल में शिक्षक का काम करने लगा। स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या इतनी बढ़ गई कि उसको रात की पाठशाला खोलनी पड़ी। वहाँ से उसने कई विद्यार्थियों को हैम्पटन की शाला में भेजने का प्रबन्ध किया। उस समय शिक्षा के विषय में अनेक भ्रममूलक कल्पनायें प्रचलित थीं। लोग समझते थे कि भाषा, साहित्य, गणित, भूगोल आदि की कुछ बातें जान लेना ही शिक्षा है। माल्हन में दो वर्ष तक शिक्षक का काम करने के बाद, शिक्षा के विषय में ज्ञान प्राप्त करने के लिए, वाशिंगटन कोलंबिया प्रान्त के वाशिंगटन शहर में आठ महीने रहा । वहाँ उसको नीग्रो लोगों की सामाजिक दशा के सम्बन्ध में बहुत सी बातें मालूम हुई । बहुतेरे लोग नाम- मात्र की शिक्षा प्राप्त करके अपने को सुखी और श्रीमान् सूचित करने के लिए यत्न कर रहे थे । इसलिए उन्हें अपनी आमदनी की अपेक्षा व्यय अधिक करना पड़ता था। फल यह होता था कि वे ऋणी हो जाया करते थे। शहरों में रहने वाले लिखे-पढ़े लोग