पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३२५

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बुकर टी० वाशिंगटन-1 /321 संस्था की उन्नति आत्मावलम्बन और परिश्रम से धीरे-धीरे टस्केजी संस्था की उन्नति होने लगी। सन् 1881 में वाशिगटन के पास अपनी संस्था के लिए थोड़ी सी ज़मीन, तीन इमारते, एक शिक्षक और तीस विद्यार्थी थे। अब वहाँ 106 इमारतें, 2350 एकड़ जमीन और 1500 जानवर है। कृषि-उपयोगी यन्त्रों और अन्य सामान की कीमत 38,85,639 रुपया है। वार्षिक आमदनी 9,00,000 रुपया है और कोष में 6,45,000 रुपया जमा है। प्रतिवर्ष 2,40,000 रुपये खर्च होते है। यह रकम घर-घर भिक्षा माँग कर इकट्ठा की जाती है। इस समय संस्था की कुल जायदाद एक करोड़ से अधिक की है, जिसका प्रबन्ध पंचों द्वारा किया जाता है। शिक्षको की संख्या 180 है। 1645 विद्यार्थी (1067 लड़के और 578 लड़कियाँ) दर्ज रजिस्टर हैं । 1000 एकड़ जमीन मे विद्यार्थियों के श्रम से खेती होती है। मानसिक शिक्षा के माथ-साथ भिन्न-भिन्न चालीस व्यवसायों की शिक्षा दी जाती है। इस संस्था में शिक्षा पाकर लगभग 3000 आदमी दक्षिणी अमेरिका के भिन्न-भिन्न स्थानों में स्वतन्त्र रीति से काम कर रहे है । ये लोग स्वयं अपने प्रयत्न और उदाहरण से अपनी जाति के हजारों लोगों को आधिभौतिक और आध्यात्मिक, धर्म और नीति-विषयक, शिक्षा दे रहे है । मिस्टर वाशिंगटन ने लिखा है कि-"संस्था की उपयोगिता उन लोगों पर अवलम्बित है जो यहाँ शिक्षा पाकर स्वतन्त्र रीति से समाज में रहने लगते हैं।" इस नियम के अनुसार यह कहा जा सकता है कि वाशिगटन की संस्था ने सफलता प्राप्त कर ली है। दक्षिणी अमेरिका के भिन्न-भिन्न स्थानो में, इस संस्था में शिक्षा पाये हुए लोगों की माँग इतनी बढ़ गई है कि लोगो की आधी भी मांग पूरी नहीं की जा सकती। अनेक विद्यार्थियों को, स्थान और द्रव्य के अभाव से, लौट जाना पड़ता है । सफलता का रहस्य वाशिंगटन को टस्केजी संस्था का जीव या प्राण समझना चाहिए। आप ही के कारण इस संस्था ने सफलता प्राप्त की है। आप ही इस संस्था के प्रिसपल हैं । आप पाठशाला में शिक्षक का काम भी करते हैं और संस्था की उन्नति के लिए गांव-गाँव, शहर-शहर, भ्रमण करके धन भी इकट्ठा करते है। आपने इस संस्था का प्रबन्ध इतना उत्तम कर दिया कि आपकी अनुपस्थिति में भी सब काम नियमपूर्वक होते रहते है और इन सब कामों की रिपोर्ट उन्हें मिलती रहती है। उन्हें अपनी स्त्री से बहुत सहायता मिलती है । वे यह जानने के लिए सदा उत्सुक रहते है कि अपनी संस्था के विषय में कौन क्या कहता है । इससे संस्था के दोष मालूम हो जाते हैं और सुधार करने का मौका मिल जाता है। आपकी सफलता का रहस्य आपके आन्तरिक उद्गारों से विदित हो सकता है । आप कहते हैं- 1. ईश्वर के राज्य में किसी व्यक्ति या जाति की सफलता की एक ही कसौटी है। वह यह कि सत्कार्य करने की प्रेरणा से प्रेरित होकर प्रयत्न करना चाहिए ।