पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३२६

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322 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली 2. जिस स्थान में हम रहें उस स्थान के निवासियों की शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आर्थिक उन्नति करने का यत्न करना ही सबसे बड़ी बात है । 3. सत्कार्य-प्रेरणा के अनुसार प्रयत्न करते समय किसी व्यक्ति, समाज या जाति की निन्दा, द्वेष और मत्सर न करना चाहिए । जो काम भ्रातृभाव, बन्धु-प्रेम और आत्मीयता से किया जाता है वही मफल और सर्वोपयोगी होता है । 4. किसी कार्य का यत्न करने में आत्मविश्वास और स्वाधीन भाव को न भूल जाना चाहिए । यदि एक या दो प्रयत्न निष्फल हो जाये तो भी हताश न होना चाहिए। अपनी भूलों की ओर ध्यान देकर विचारपूर्वक बार-बार यत्न करते रहना चाहिए। अन्त में ईश्वर की कृपा से अवश्य ही सफलता होती है । , गुणों का उचित आदर वाशिंगटन का यह विश्वास है कि योग्यता अथवा श्रेष्ठता किसी भी वर्ण, रंग और जाति के मनुष्य में हो, वह छिप नहीं सकती। अन्त में वह मनुष्य अवश्य ही विजयी होता है । गुणों की परीक्षा और चाह हुए बिना नहीं रहती। यह सर्वथा सच है-"गुणा: पूजास्थानं गुणिषु न च लिङ्ग न च वयः ।" वाशिंगटन ने जो जातिसेवा-रूप परोपकार किया है वह यह समझकर किया है कि हमारा कार्य छोटा ही क्यों न हो -अत्यन्त क्षुद्र ही क्यों न हो-यदि यह औरों से अधिक उपयोगी, सुखदायक और कल्याणकारक होगा तो वर्ण या जाति की परवा न करते हुए 'गुणाः पूजास्थानं' इस सनातन नियम के अनुसार, सब लोग उसका उचित आदर अवश्य ही करने लगेंगे। कार्य का आदर करने में-मद्गुणों का सत्कार करने में कार्यकर्ता का सम्मान करना ही पड़ता है । अमेरिका-निवामियों ने बुकर टी० वाशिंगटन जैसे सद्गुणी और परोपकारी कार्यकर्ता का उचिल आदर करने में कोई बात उठा नही रक्खी। हारवर्ड विश्वविद्यालय ने आपको 'मास्टर आव आर्ट म' को सम्मानसूचक पदवी दी है। अटलंटा की राष्ट्रीय प्रदर्शनी खोलने के समय, उस प्रान्त के गवर्नर साहब ने वाशिंगटन को आरम्भिक वक्तृता करने का बहुमान दिया है । अमेरिका के प्रेसिडेंट (राजा) ने टस्केजी संस्था में पधारकर नीग्रो जाति के अगुआ वाशिंगटन का गौरव करते समय यह कहा कि “यह संस्था अनुकरणीय है। इसकी कीर्ति यहीं नहीं, किन्तु विदेशों में भी बढ़ रही है । इस संस्था के विषय में कुछ कहते समय मिस्टर वाशिंगटन के उद्योग, साहस, प्रयत्न और बुद्धि-सामर्थ्य के सम्बन्ध कुछ कहे बिना रहा नहीं जाता । आप उत्तम अध्यापक हैं, उत्तम वक्ता हैं और सच्चे परोपकारी पुरुष हैं। इन्हीं सद्गुणों के कारण हम लोग आपका सम्मान करते हैं।" उपसंहार सोचने की बात है कि जिम आदमी का जन्म दासत्व पिता या पूर्वजों का कुछ भी हाल मालूम नहीं, जिसको अपनी बाल्यावस्था में स्वयं मजदूरी करके पेट भरना पड़ा, वही इस समय अपने आत्म-विश्वास और आत्म-बल के आधार पर कितने ऊँचे पद पर पहुंच गया है। बुकर टी० वाशिंगटन का जीवनचरित में हुआ, जिसको अपने