पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३५२

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लुई पास्टुर फ्रांस के प्रसिद्ध रसायन-शास्त्रवेत्ता लुई पास्टर की गणना उन वैज्ञानिकों में है जिसके आविष्कारों से संसार को अपरिमित लाभ पहुंचा है । संसार में न तो विद्वानों का अभाव है और न कीत्तिमान् पुरुषों का । परन्तु ऐसे थोड़े ही लोग होते हैं जो संसार में सुख और शान्ति फैलाने की चेष्टा में ही अपना जीवन लगा देते हैं । वे किसी स्वार्थ-भाव से प्रेरित होकर उद्योग नहीं करते। सच तो यह है कि अपने उद्योग में वे ऐसे लीन हो जाते हैं कि उद्योग ही उनका जीवन हो जाता है । लुई पास्टुर ऐसे ही मनुष्य थे। उनके समान उद्योगशील मनुष्य थोड़े ही होंगे। लुई पास्टुर का जन्म 27 दिसम्बर सन् 1822 ईसवी को हुआ था। उसके पिता साधारण स्थिति के गृहस्थ थे। वे चमड़े का रोज़गार करते थे । पास्टुर को अपने जन्म- स्थान से बड़ा प्रेम था। एक बार जब वह पेरिस में बीमार पड़ा तब उसने अपने साथी से कहा-“यदि मैं एक बार भी अपने पिता के चमड़े के कारखाने में जा सकू तो जरूर अच्छा हो जाऊँ” । जन्मस्थान के प्रति लुई का यह प्रेम सदा बना रहा। कदाचित् यही कारण है कि लुई के स्वभाव में इतनी सरलता और स्नेह था। बाल्यावस्था में लुई की कुछ भी प्रसिद्धि नहीं हुई। उसके जन्म के बाद उसका पिता सपरिवार अरबई (Arbois) नामक स्थान में चला आया। यहीं लुई को प्रारम्भिक शिक्षा मिली। साधारण शिक्षा पा लेने के बाद यहीं एक कालेज में वह भरती हुआ। उसकी गणना साधारण विद्यार्थियों में की जाती थी। पर लुई के सौभाग्य से यहीं एक अध्यापक से उनका परिचय हो गया। उस अध्यापक ने लुई में प्रतिभा के चिह्न देखे और उसी ने लुई को इस बात के लिए उत्साहित किया कि वह पेरिस जाकर इकोली नारमेली (Ecole Normale) नामक संस्था में भरती हो। 1838 में लुई अपने एक मित्र के साथ पेरिस गया भी। वहाँ जाकर उसने एक स्कूल में नाम भी लिखाया। पर थोड़े ही दिनों के बाद उसका स्वास्थ्य बिगड़ गया और वह घर लौट आया। परन्तु नारमेली में भरती होने की आकांक्षा घटी नहीं। कुछ समय के बाद वह वेसानकान (Besancon) के रॉयल कालेज में भरती हुआ। 1840 में वह पदवीधर हो गया और उसी कालेज में गणित का मरकारी अध्यापक भी नियुक्त हुआ। दो माल के बाद परीक्षा देकर उसने विज्ञान की भी पदवी प्राप्त कर ली और वह नारमेली के लिए उम्मेदवार हुआ। परन्तु कदाचित् परीक्षक की भूल से यहाँ उसे जो प्रशंसापत्र (डिप्लोमा) मिला था उसमें लिखा था कि उसका रसायन-शास्त्र में बहुत साधारण ज्ञान उस समय ट्रमा सबसे प्रसिद्ध रसायन-शास्त्रवेत्ता थे। उन्हीं का एक व्याख्यान सुन कर पास्टुर को भी रसायन-शास्त्र में विशेष विज्ञता प्राप्त करने की इच्छा हुई।