पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यमलोक का जीवन | 353 , । - नियत हुए । यह धूमपोत इंगलैंड के काउस स्थान से, महाराज मातवें एडवई और उनकी महारानी के सामने, 6 अगस्त, 1901 को छूटा । इस पर सरकारी मामुद्रिक विभाग के चुने हुए 11 अफ़सर और 37 मनुष्य भेजे गये । उनके माथ उत्तरी ध्रुव के 23 कुत्ते भी भेजे गये । ये कुत्ते वर्फ के ऊपर छोटी-छोटी गाड़ियाँ खींचने के लिये थे । 1500 मील की यात्रा करके यह धूमपोत 9 जनवरी 1902 को दक्षिणी ध्रुव के किनारे पहुँचा । दक्षिणी ध्रुव के आस-पाम का प्रदेश आस्ट्रेलिया के बगवर है। वहां पहुँचकर, जहाँ तक हो सका, इम चढाई ने अपना काम किया; अनन्तर इमको यरवग नामक मजीव ज्वालामुखी पहाड़ के पास ठहर जाना पड़ा । क्योकि जाड़े के दिन आ गये और बर्फ अधिक पड़ने के कारण चढाई के लोग और अधिक काम न कर सके। 8 फरवरी को काम बन्द हुआ। सब लोग बर्फ से बचने और दक्षिणी ध्रुव की लम्बी गत मे आराम से रहने का प्रबन्ध करके ठहर गये । वहाँ की रात 2 अप्रैल से 27 अगस्त तक रहती है। गत का आरम्भ हुआ। वर्फ भी खूब पड़ने लगी। 400 मील तक समुद्र के ऊपर बर्फ जम गयी। 'डिस्कवरी' का सम्बन्ध बाहरी दुनिया से बिलकुल ही छूट गया। नवम्बर 1902 में कप्तान स्काट, डाक्टर विलमन और लेफ्टिनेट जैकलटन ने मब कुत्ते माथ लिये और स्लेज नाम की छोटी-छोटी गाड़ियाँ लेकर वे बर्फ के ऊपर दक्षिणी ध्रुव की ओर दूर तक चले गये । मार्ग में उनको मस्त तकलीफें हुई तथापि वे 82' 17 अंश तक दक्षिण की ओर गये और वहां उन्होने अंगरेज़ी झण्डा गाड़ा । दक्षिणी ध्रुव वहाँ से 467 मील रह गया। आज तक जितने लोग दक्षिणी ध्रुव की तरफ गये थे, उन सबसे वे लोग 207 मील और आगे बढ़ गये । इस चढाई की सहायता के लिए और इसे भोजन, वस्त्र इत्यादि पहुँचाने के लिए पीछे से धूमपोत और भेजे गये। उन्हीं में से 'मानिग' नाम के धूमपोत में लेफ्टिनेंट शैकलटन, बीमार हो जाने के कारण, इगलैंड लौट आये। उन्होने दक्षिणी ध्रुव की जीवन-यात्रा के सम्बन्ध में जो कुछ प्रकाशित किया है उसका माराण उन्हीं के मुंह से सुनिए- उत्तरी ध्रुव की अपेक्षा दक्षिणी ध्रुव में शीत अधिक है । उत्तरी ध्रुव के जिस अंश में जितना शीत है, दक्षिणी ध्रुव के उसी अंश में उस शीत की अपेक्षा बहुत अधिक है। पृथ्वी का वह भाग जो दक्षिणी ध्रुव के आस पास है इतना शोभाशाली है कि एक बार वहाँ जाकर फिर लौटने को जी नहीं चाहता। वहाँ के शीत की, वहाँ की तकलीफ़ों की और वहाँ की निर्जनता की कुछ परवा न करके पुनर्वार वहाँ जाने की इच्छा होती है। उसकी प्राकृतिक शोभा कभी नही भूलती। वह वहां बलात् ले जाने के लिए चित्त को उत्कण्ठित किया करती है। चलते-चलते एक दिन सहसा हम लोगों को कुछ सफ़ेदी नज़र आई। वह सफ़ेदी बर्फ के छोटे छोटे टुकड़ों की चादर थी। हमारा जहाज (डिस्कवरी) धीरे धीरे उस बर्फ को फाड़ता हुआ आगे बढ़ने लगा। कुछ देर बाद हिने बायें और आगे पीछे समुद्र शुभ्र रजतमय हो गया। बर्फ की सफ़ेद लाइन, जिस तरफ नज़र उठाइए उसी तरफ देख पड़ने लगी। उस बर्फ के ऊपर सील नामक मछलियाँ और पेनगुइन नामक चिड़ियां आनन्द से खेल रही थीं । सीलों ने तो हमारी कुछ परवा न की । उन्होने हमारी तरफ