पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३५८

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354/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली नजर तक नहीं उठायी। परन्तु पेनगुइन चिड़ियाँ एक विलक्षण प्रकार की आवाज़ करते हुए हमारी तरफ दौड़ी । हमारे जहाज़ को देखकर उन्हें शायद आश्चर्य सा हुआ । उन्होंने शायद अपने मन में समझा कि यह कोई महाबलवान दानव उनके घर में घुस आया है । ये चिड़ियाँ बहुत बड़ी न थीं। उनकी छाती सफेद और पीठ काली थी। पाँच रोज तक उस पतले बर्फ को फाड़ता हुआ हमारा जहाज़ चला गया । उस रोज हमको दक्षिणी ध्रुव के पास का प्रदेश देख पड़ा । बर्फ से ढके हुए उन आकाणभेदी पर्वतों का दृश्य हमको कभी न भूलेगा। 10 से लेकर 15 हजार फुट तक वे स्वच्छ और निरभ्र नीले आकाश के भीतर चले गये थे। वहाँ पर हम लोगों के लिए बहुत कम काम था। पौधों और जीवधारियों के नमूने हम लोगों को लेने थे। परन्तु वहाँ पर दो एक सामुद्रिक पौधे, सील और पेनगुइन के समान दो चार चिड़ियों को छोड़कर और कछ था ही नहीं। यह बात उत्तरी ध्र व में नही। वहाँ अनेक प्रकार के वनस्पति और पशु पक्षी पाये जाते हैं। दक्षिणी ध्रुव में एक प्रकार की सील बहुत अधिकता से होती है। उसी पर हम लोग प्राय: बसर करते थे । तौल में वह कोई 14 मन होती है। ये मछलियाँ बर्फ के ऊपर धीरे-धीरे घूमा करती हैं; आदमी से वे ज़रा भी नहीं डरती । उन्होने कभी आदमी देखा ही नहीं । अतएव मारने के लिए भी यदि आदमी उनके पास पहुंचते है तब भी वे अपनी जगह से नहीं हटतीं, परन्तु पेनगुइन का मिज़ाज इतना सीधा नही। वे आदमी को देखकर उन पर हमला करने के लिए दौड़ती है । इन चिडियो के घोंसले बहुत छोटे और भद्दे होते है । जब ये चिड़ियाँ अपने बच्चो को खिलाती है तब उनको देखकर बड़ा आनन्द आता है । बच्चो के माँ-बाप पास वाली समुद्र की उथली वाड़ियों की ओर उड़ जाते हैं। वहाँ वे मछलियों वगैरह का शिकार करके अपने मुंह में रख लेते हैं । जब मुंह भर जाता है तब वे अपने घोंसलों को उड़ आते हैं। वहाँ आते ही उनके बच्चे मुंह में अपनी चोंच डालकर बड़े प्यार और बड़े प्रेम से उन लजीज चीजों को चुगते है। जिस समय का जिक्र है, वह ग्रीष्म ऋतु थी। ग्रीष्म क्या उसे वसन्त ही कहना चाहिए । किसी किसी दिन आकाश निरभ्र और सूर्य्य चमकीला नज़र आता था । जब सूर्य की किरणें बर्फ के ऊँचे-ऊंचे टीलों पर पड़ती थी नब वडा कौतुक मालूम होता था। उनको देखकर तबियत बहुत खुश होती थी। जान पड़ता था कि तपाये हुए सुर्ख सोने के तार मूर्य-मण्डल से उन राशि-राशिमय बर्फ के शिखगें तक फैले हुए हैं। यह ऋतु सिर्फ छः हफ्ते रहती है । 16 दिसम्बर से 31 जनवरी तक ही यह शोभा देखने को मिलती है। जिस दिन यरवस नामक ज्वालामुखी पर्वत हम लोगो को पहले-पहल दिखलाई दिया, वह दिन हमें बखूबी याद है। इस पर्वत का पता 60 वर्ष हुए सर जेम्स रास ने लगाया था। यह पर्वत 12,500 फुट ऊँचा है। जब हम लोग उसके पास पहुँचे, हमने देखा कि उसके मुंह से धुर्वे की धारा भक-भक निकल रही है । जहाँ चारों ओर बर्फ के ऊंचे-ऊंचे टीले खड़े हुए है, जहां समुद्र ही बर्फमय हो गया है, वहाँ इस ज्वालागर्भ पर्वत को देखकर बड़ा विस्मय होता है । जहाँ प्रचण्ड शीत वहाँ अग्नि वमन करने वाला पर्वत ! परन्तु प्रकृति बड़ी विचित्र है । वह अपनी विचित्रता के ऐसे ही ऐसे विलक्षण उदाहरण