पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३६

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32 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली उसकी दैनंदिन वृद्धि होती गई । फल यह हुआ कि हिन्दू धर्म के अनुयायियों की संख्या कम होती गई और बौद्ध धर्म के अनुयायियों की बढ़ती गई। कम्बोडिया (काम्बोज) में जो शिलालेख मिले हैं उनसे सूचित होता है कि तेरहवीं सदी तक बौद्ध और हिन्दू दोनों ही वहाँ साथ ही साथ रहते थे । बौद्ध तो महायान-सम्प्रदाय के मानने वाले थे और हिन्दू प्राय: शैव थे। उस समय तक दोनों धम्मों के अनुयायी संस्कृत भाषा का आदर करते थे । उनके शिलालेखों में यह भाषा बहुत ही विशुद्ध रूप में पाई जाती है। आर्यों ने अपने उपनिवेश चम्पा और काम्बोज ही में नहीं स्थापित किये। वे वहाँ से आगे बढ़ते हुए टापुओं तक में जा बसे । जावा में कुछ ऐसे शिलालेख मिले है जो 400 ईसवी के अनुमान किये गये है। वे सभी संस्कृत में हैं । उनमें नारूमनगर के राजा पूर्णवर्मा का उल्लेख है । बोर्नियो नाम के टापू में भी संस्कृत भाषा में खुदे हुए शिलालेख मिले हैं। उनमें भी जिन राजों के नाम आये हैं सभी के अन्त में 'वा' शब्द है । सुमात्रा द्वीप में तो अनेक शिलालेख पाये गये हैं। वे भी संस्कृत ही में हैं। उनमें वन्ति- नामधारी नरेशों के उल्लेख हैं । इन लेखों का प्रकाशन और सम्पादन फेराड नाम के एक विद्वान् ने किया है। प्राचीन काल में सुमात्रा द्वीप श्रीविजय नाम से ख्यात था। कम्बोडिया अर्थात् प्राचीन काम्बोज का पहला वर्मा नामधारी राजा श्रुतवा था। उसने अपने राज्य की सीमा की विशेष वृद्धि की और उसे स्थायित्व प्रदान किया। वह कौण्डिन्य-गोत्र का था । शिलालेखों में उसने अपने को सोमवंशी बताया है। उसने 435 से 495 ईसवी तक राज्य किया। 680 ईसवी तक वहाँ वर्मा-नामधारी सात नरेशों ने राज्य किया। उसके बाद कोई सौ वर्ष तक वहाँ अराजकता सी रही । तदनन्तर 18 नरेश वहाँ और हुए। उनके नामों के अन्त में भी 'वा' शब्द था । इस सरह काम्बोज में 24 राजे ऐसे हुए जिनके उल्लेख शिलालेखों में पाये जाते हैं। प्राचीन इतिहास की जानकारी के लिए शिलालेख ही सबसे अधिक विश्वसनीय साधन हैं । और चूंकि इन सब राजों के नाम धाम और काम आदि का वर्णन इन्हीं से मालूम हुआ है, अतएव इन बातों के सच होने में ज़रा भी सन्देह नहीं। ईसा के छठे शतक में काम्बोज में भव वर्मा नाम काएक राजा था। वह शैव था । देवी-देवताओं के विषय में उसकी बड़ी पूज्य बुद्धि थी। उसने कितने ही मन्दिर बनवाये और उनमे देव-विग्रहो की स्थापना की । एक मन्दिर में उसने रामायण, महाभारत और अष्टादश पुराणों की पुस्तकें रखवा दी और उनके ययानियम पारायण का प्रबन्ध कर दिया। सातवे शतक में ईशानवा नाम का एक राजा इतना शिवोपासक हुआ कि उसने अपनी राजधानी का नाम बदल कर ईशानपुर कर दिया। काम्बोज में जितने प्राचीन शिलालेख मिले हैं सब संस्कृत में हैं। उनकी भाषा व्याकरण की दृष्टि से बहुत ही शुद्ध है। उसमें लालित्य और रसालस्व भी है। इन लेखो की प्रणाली बिलकुल वैसी ही है जैसी कि भारत में प्राप्त हुए उस समय के शिलालेखों की है। इनमें सर्वत्र शक-संवत् का प्रयोग है और वह भी उसी ढंग से किया गया है जिस ढंग से कि भारतीय शिलालेखों में पाया जाता है। जो चीज जिसे दी गई म. वि. १०-4 1