पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३७२

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368 / महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली तक पहुंचे थे। अब एक अमेरिकन साहब ने इन ड्यूक महाशय को भी मात दिया है। आपका नाम है कमांडर पोरी। उत्तरी ध्रुव पर चढ़ाई करने के लिए आप 16 जुलाई 1905 को उत्तरी अमेरिका के न्यूयार्क शहर से रवाना हुए थे। कोई डेढ़ वर्ष बाद आपकी चढ़ाई का फल प्रकाशित हुआ है । उससे मालूम हुआ है कि आप 87 अंश 6 मिनः तक गये। वहाँ से आगे नहीं जा सके। अर्थात् उत्तरी ध्र व से कुछ कम 3 अंश इधर ही रह गये । यही बहुत समझा गया है। लोग धीरे धीरे आगे ही बढ़ रहे है । बहुत सम्भव है किसी दिन कोई 90 अंश तक पहुँच कर ध्रुव के दर्शनो से कृतकृत्य हो आवे । कमाडर पीरो ने उत्तरी ध्रुव के पास बर्फ से भरे हुए समुद्र में चलने लायक़ एक 'बास तरह का जहाज बनवाया। 16 जुलाई 1905 को वह जहाज न्यूयार्क से चला। उम पर मब मिलाकर 20 आदमी थे। मव कप्तान बार्टलेट की निगगनी में थे। पीरी साहव जहाज के माथ नहीं रवाना हुए । उत्तरी अमेरिका के ठेठ पूर्व, ममुद्र से मटे हुए, नोवा स्कोटिया के बेटन नामक अन्तरीप में सिडनी नाम का एक बन्दरगाह है। वहीं जाकर कमांडर पीरी जहाज़ पर सवार हुए । वहाँ जहाज ने खूब कोयला लिया । खाने पीने का भी सामान यथेष्ट लादा । 26 जुलाई को जहाज ने सिडनी से लंगर उठाया। जहाज़ का नाम है 'रूजवेल्ट' । अमेरिका की संयुक्त रियासतो के सभापति रूजवेल्ट के नामानुसार इसका नाम रक्खा गया है। 29 जुलाई को यह जहाज 'डोमिनोरन' नामक बन्दरगाह मे पहुंचा । वह जगह लबगडोर नाम के टापू में है। वही उत्तरी अमेरिका के पूर्व है और अँगरेजों के न्यूफ़ौडलैड टापू अन्तर्गत है। वहाँ से वह ग्रीनलैंड की तरफ उत्तर को रवाना हुआ। 7 अगस्त को वह ग्रीनलैड के यार्क नामक अन्तरीप में पहुंचा और 16 को एटा नामक बन्दगाह में । इस जहाज के साथ उसकी एक मददगार भी था। उसका नाम है 'यरिक' । यह जहाज ग्रीनलैंड के कितने ही स्थानो में, वहां के निवामियों तथा कुत्तों को लेने के लिए घूमता फिरा । जब यह काम हो चुका तब 13 अगस्त को उसने लाये हुए कुत्तो और आदमियों को 'रूजवेल्ट' के हवाले किया । एटे में 'रूजवेल्ट' कई दिन तक ठहग। अपने प्रत्येक पुर्जे की परीक्षा करके उन्हें खूब साफ किया। जहाँ तक कोयला लाद सका 'यरिक' से लिया। क्योकि अब आगे और कोयला मिलने की आशा न थी। 200 कुने और यस्किमो नामक जाति के 23 आदमी भी 'यरिक' से उसने लिए । यस्किमो जाति लोग बफिस्तानी देशों और टापुओं मे रहते है । बर्फ में रहने का उन्हें जन्म ही से अभ्याम रहता है। वे उत्तरी ध्रुब के आस पास के प्रदेश से खूब परिचित होते है। इसीलिये कमांडर पीरी ने उनको अपने साथ ले जाने की ज़रूरत समझी। बर्फ में डूबे हुए उत्तरी ध्रव के पास वाले प्रदेश में, गत वर्ष, पीरी साहब ने जो अनुभव प्राप्त किया, और जो कुछ उन पर बीती, उसका संक्षिप्त वृत्तान्त उन्होंने 2 नवम्बर 1906 को लिखकर रवाना किया है। लबराडोर के होपडेल नामक स्थान से उन्होंने यह वृत्तान्न न्यूयार्क को भेजा है। उसका मतलब हम थोड़े में उन्हीं की ज़बानी यहाँ देते हैं- म.दि.१०.4