पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३७८

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374/ महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली साथ थे, तीन टुकड़ियों में बाँट दिये गये। सबके लिए अलग अलग स्लेज गाड़ियां तैयार हुईं। ये तीनों टुकड़ियाँ 15, 21, और 22 फरवरी को अलग अलग तीन आदमियों की अध्यक्षता में उत्तरी ध्रुव के लिए रवाना हुई। एक के अध्यक्ष हुए कप्तान बार्टलेट, दूसरी के अध्यापक मारटीन, तीसरी के कमांडर पीरी । सब मिलाकर इस चढ़ाई में 7 गोरे और 59 यस्किमो जाति के बफिस्तानी आदमी थे। स्लेज गाडियों की संख्या 23 यी और कुत्तों की 140। कोलम्बिया अन्तरीप में तीनों टुकड़ियाँ एकत्र हुई। कुत्तों को विश्राम दिया गया। साथ ही गाड़ियों की मरम्मत की गई। खाने पीने का सामान फिर से सँभाला गया। 27 फरवरी तक यह सब होता रहा । बार्टलेट साहब आगे बढ़े । वे बहुत दूर तक निकल गये । उनके पीछे दूसरी टुकड़ी वालों को बर्फ ने बहुत सताया । ज़ोर की हवा ने वर्फ के टुकड़ों को तोड़ फोड़ डाला । समुद्र खुल गया । उस पर जो बर्फ जमा हुआ था वह बह गया । अब वह पार कैसे किया जाय ? दो गाड़ियां वहाँ पर टूट गई । फिर आदमी पीछे भेजे गये। वे कोलम्बिया अन्तरीप से दो और गाडियाँ ले गये। चौथे दिन खुले समुद्र को किसी तरह पार करके पिछली दोनो टुकड़ियों ने बार्टलेट वाली टुकडी को जा पकड़ा, जाड़ो के वाद 5 मार्च को सूर्य के पहले पहल दर्शन हुए। 11 मार्च को फिर कूच हुआ । वहाँ से सिर्फ 16 आदमी, 12 गाड़ियां और 100 कुत्ते पीरी ने साथ रक्ग्वे । बाकी के कुछ वही रहे, कुछ लौटा दिये गये। दो तीन गोरे भी आगे न बढ़ सके । एक का पैर सूज गया । एक रास्ता ही भूल गया । इमसे वे पीछे पड़े रह गये। मारटिन और बार्टलेट ने बहुत दूर तक पीरी का साथ दिया । परन्तु खाने पीने का सामान कम रह जाने से मारटिन को भी पीछे ही पड़ा रह जाना पड़ा । रहे बार्टलेट, मो उनसे पीरी ने कहा, आप क्यो उत्तरी ध्रुव तक जाने का कष्ट उठावेंगे। मैं ही अमेरिका की तरफ से वहाँ तक जाने का बीडा उठा आया हूँ । सो अब मुझे ही जाने दीजिए। कमांडर पीरी बड़ी मुस्तैदी और बहादुरी से आगे बढ़ने लगे। किसी दिन वे 20 मील चलते थे, किमी दिन 25 मील। मुसीबतो का तो कुछ ठिकाना ही न था। मारे जाडो के बफिस्तानी यस्किमो लोगों तक के नाकोंदम हो गया। अंगुलियाँ सूज गई। चेहरो की बुरी दशा हो गई। पीरी के क्लेशों की तो कुछ पूछिये ही नही । जहाँ ये लोग विश्राम के लिए ठहरते थे, वही पर कभी कभी बर्फ फटकर खुला समुद्र निकल आता था और ये लोग डूबने से बाल-बाल बच जाते थे। चलते चलते कमाडर पीरी 88 अक्षांश नक जा पहुँचे । अब उन्होंने मोना और आराम करना बहुत कम कर दिया। दौड़ने ही की उन्होने धुन बाँधी । जरा आराम करना और फिर दौड़ लगाना । चौबीसवें पड़ाव पर पोगे ने जो यन्त्र से दूरी जांची तो मालूम हुआ कि वे लोग अक्षांश 89 कला 25 पर पहुँच गये हैं। अब वे बारह बारह घण्टे में चालीस चालीस मील चलने लगे। छब्बीसवें पड़ाव पर वे अक्षांश 89 कला 57 पर जा पहुंचे। वहाँ से उनरी ध्रुव केवल 3 कला अर्थात् 3 मील से कुछ अधिक दूर था। बस फिर क्या था, फिर कूच किया गया और वह तीन मील का सफ़र तै कर डाला गया । ठीक उत्तरी ध्रुव पर जाकर 5 एप्रिल 1909 को पीरी ने उसे अपने पैरों के स्पर्श से पुनीत किया।