पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३८७

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- विस्यूवियस के विषम स्फोट-1 / 383 जितनी ऊंचाई है, प्राचीन समय में वह उससे दूनी थी। परन्तु एक महा वेगवान् स्फोट में उसके सबसे ऊँचे शिखर उड़ गये। तब से उसे यह वामन रूप मिला है। विस्यूवियस कई सौ वर्ष तक शान्त था । जान पड़ता था कि उसकी जठगग्नि मन्द हो गई और वह हमेशा के लिए शिथिल पड़ गया। इसीलिए मनुष्यों ने उसके इर्द- गिर्द अनेक बाग़ लगा दिये, अनेक नगर और गांव बसा दिये; यहाँ तक कि पर्वत के ऊपर उसके ज्वालावाहक मुंह तक वे अपनी भेड़ बकरियाँ चराने के लिए ले जाने लगे। उसके शिखर नाना प्रकार के हरे हरे पेड़ो और लताओ से ढक गये । उनको देख कर यह वात कभी मन में न आती थी कि वह अग्निगर्भ पर्वत है। 63 ईसवी में अकस्मात् भूडोल आया और विस्यूवियम के पेट में फिर, सैकड़ों वर्ष के बाद, गड़बड़ शुरू हुई। 16 वर्ष तक भूडोल आते रहे और जिस प्रान्त में यह पर्वत था उसके निवासियों के कलेजे को कंपाते रहे। अनेक मकान गिर गये, मन्दिरों के अनेक शिखर टूट पड़े; ऊँचे ऊँचे महल पृथ्वी पर उलटे लेट रहे । आगे आने वाले तूफ़ान की 12 वर्ष-व्यापी एक छोटी सी सूचना थी। मनुष्य-संहारक प्रलय का यह आदि रूप था । भूडोल के धरके धीरे धीरे अधिक उग्र होते गये । अन्त में 24 अगस्त 79 ईसवी को विम्यूवियस का भीषण मुँह, महा भयंकर अट्टहास करके, खुल गया । क्षुब्ध हुए समुद्र में जिस प्रकार एक छोटी-सी डोगी हिलती है, एक निमेष में कई हाथ ऊपर उठ कर फिर आ जाती है-स्फोट होने के पहले, उसी प्रकार, पृथ्वी हिल उठी । सपाट जमीन पर भी जाती हुई गाड़ियाँ उलट गई; मकान गिरने लगे और उनके भीतर से मनुष्य भागने लगे; समुद्र किनारो से कोसों दूर हट गया; अनन्त जलचर सूखी ज़मीन में पड़े रह गये । वह हो चुकने पर विस्यूवियस ने अपने पेट के पदार्थ वमन करना आरम्भ किया। प्रलयकाल के मेघ के समान भाफ की घोर घटा हाहाकार करते हुए उसके मुंह से निकलने लगी। ठहर ठहर कर सैकड़ों वज्रपात के समान महाप्रचण्ड गड़गड़ाहट प्रारम्भ हुई । भाफ के साथ राख और पत्थर उड़ने लगे और दूर दूर तक गिर कर देश का सर्वनाश करने लगे। बिजली इतनी भीषणता से चमकने लगी कि पचास-पचास कोस दूर तक के लोगो की आँखो में चकाचौध आ गई । मुंह के ठीक बीच से जलते हुए धातु और पत्थरों की राशि आकाश की और कोसो ऊपर उड़ने लगी। तीन दिन तक आस पास का देश अन्धकार- मय हो गया । विस्यूवियम ने महा प्रलय कर दिया। उसके पास के हरक्युलैनियम, पाम्पियाई और स्टेबिया नामक तीन शहर समुल लोप हो गये । उनके ऊपर बीस बीस फुट गहरी बजरी, गख और पत्थर आदि की तह जम गई । सारे जीवधारियो का सहसा संहार हो गया। विस्यूवियस ने अपने मुंह से इतनी भाफ उगली कि उसके चारो ओर महाभयंकर और महावेगवान नद बह निकले और अपने साथ उस पर्वत के भीतर से निकले हुए राख और पत्थर आदि पदार्थों को बहा कर, उन्होंने बाग़, खेत, गाँव, नगर जो कुछ उन्हें मार्ग में मिला, सबको दस दस पन्द्रह पन्द्रह हाथ ज़मीन के नीचे गाड़ दिया। इस स्फोट में अनन्त प्राणियों ने अपने प्राण खोये । इसके बाद कोई 1500 वर्ष तक विस्यूवियस प्रायः शान्त रहा । बीच में कभी एक आध बार उसने धीरे से श्वास अथवा डकार लेकर ही सन्तोष किया। इन 1500 वर्षों