पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३९४

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390/महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली निकल गई । अनन्त हानि हुई। 10 अप्रैल को भाफ की वर्षा कुछ कम हो गई; पर 11 को फिर वह प्रबल हो उठी। सरकारी हुक्म से नेपल्स में मकानों की छतें कहीं कहीं उतार दी गई हैं, जिस में राख के वज़न से वे गिर न जायें । कई इंच गहरी रेत और राख शहर में सब तरफ बिछ गई है। विस्यूवियस के शांत होने पर आदमी फिर अपने उजड़े हुए घरों को लौटने लगे। अब तक शायद कितने ही मकान फिर से बन गये हो। किसी किसी विषय में मनुष्य के धैर्य और उस की सहनशीलता का विचार करके आश्चर्य होता है। जिस विस्यूवियस ने अनेक बार प्रलय करके असंख्य धन और जन का नाश किया उसी के पास जा जा कर फिर आदमी बस गये । इस दफ़े भी वही हो रहा है । उस साल मार्टिनीक और सेंटविसेंट मे जो स्फोट हुआ था उससे कोई 50 हजार आदमी मरे थे। पर वहाँ भी अब पूर्ववत् बस्ती हो गई है। सान-फ्रांसिसको भी नये सिरे से बन रहा है और आबाद हो रहा है । इसी तरह कुछ दिनों में विस्यूवियस के पास के उजाड़ गाँव और नगर भी फिर पूर्ववत् आबाद हो जायेंगे। क्या ही अच्छा हो यदि किसी अच्छे विषय में नाकामयाबी होने पर, आदमी इसी तरह के सहनशीलत्व, धीरज, उद्योग और परिश्रम से काम लें। [जुलाई, 1906 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'प्रबन्ध-पुष्पांजलि' में संकलित।