पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३९७

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पाताल-प्रविष्ट पापियाई नगर / 393 हाय, किस-किसके लिये कोई अश्रु-पात करे ! यह दुर्घटना 23 अगस्त, 79 ईसवी की है। 1645 वर्ष बाद जो यह जगह खोदी गई, तो जो वस्तु जहाँ थी, वहीं मिली। यह प्राय: सारा-का-सारा शहर पृथ्वी के पेट से खोद निकाला गया है। अब भी कभी-कभी इसमें यत्र-तत्र खुदाई होती है, और अजूबा-अजूबा चीजें निकलती हैं। पापियाई मानो दो हजार वर्ष के पुराने इतिहास का चित्र हो रहा है। दूर-दूर से दर्शक उसे देखने जाते हैं। ['भ्रमर' नाम से अक्टूबर, 1911 की 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'अद्भुत आलाप' में संकलित ।]