पृष्ठ:महावीरप्रसाद द्विवेदी रचनावली खंड 4.djvu/३९९

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- ढाई हजार वर्ष की पुरानी कबरें | 395 मिलती है। ऊपर का हिस्सा तो छोटा है, पर नीचे का जबड़ा बड़ा । हड्डियों को देखने से मालूम होता है कि इन लोगों की ऊंचाई 5 फुट 42 इंच रही होगी। इस कबरिस्तान में छ: कबरे खोदकर खुली हुई होड़ दी गई हैं। उनके ऊपर शीशे के घर बना दिये हैं गये है । क़बरों में पाई गई हड्डियाँ साफ़ करके जैसी की तैमी रख दी गई हैं। किसी क़बर में एक टठरी है, किसी में दो और किसी में ज्यादह ठठरियाँ, बैठी हुई दशा मे, हैं। उनके घुटने ऊपर को ठड्ढी से लगे हुए है । एक क़बर की हड्डियाँ नीचे पड़ी हुई है । कई हड्डियों पर चोट के चिह्न हैं। कुछ हड्डियाँ चिपटी हो गई है । बहुत लोगो का ख़याल है कि उस ज़माने में लोग मनुष्यो का बलिदान देते थे। जब कोई दावत या धाम्मिक काम होता था तब एक-आध आदमी का वलिदान जरूर किया जाता था। उसकी हड्डियां तोड़-फोड़कर कवर में गाड़ देते थे । एक कवर के भीतर एक खोपड़ी मिली, जो कई जगह से टूटी है । नाक की हड्डी कटी हुई है। तीन दाँत अपनी जगह से हटकर नीचे के जबड़े में घुस गये है। इससे मालूम होता है कि जिस आदमी का बलिदान किया जाता था वह बुरी तरह से मारा जाता था। उसका सिर पत्थर या किसी और औज़ार तोड दिया जाता था। जितने पुरातत्त्व-विद्वानो को इन क़बरों की हड्डियाँ और कंकाल दिखलाए गए सबने यही गय दी कि ये क़बरें ढाई हजार वर्ष से कम पुरानी नहीं हैं, अधिक चाहे हों। किसी-किमी का यह खयाल है कि ये उस समय की कवरें है जब रोमन लोगों के कब्जे में इंगलिस्तान नहीं आया था। लगभग तीन हजार वर्ष पहले लोगो के सिर गोल नही होते थे । वे कुछ-कुछ चिपटे होते थे । उसी समय की ये क़बरें है । दाँतों की परीक्षा से मालूम होता है कि जिन लोगों के दाँत है वे अनाज अधिक खाते थे, मांस कम; क्योंकि दाँत बहुत घिसे हुए है । मालूम होता है कि तब तक इन लोगो के पास शिकार करने के लायक कोई अच्छे शस्त्र न थे। इन क़बरो में एक भी सिक्का नहीं मिला, जो इनकी प्राचीनता का बहुत बड़ा प्रमाण है। [जून, 1908 को 'सरस्वती' में प्रकाशित । 'प्राचीन चिह्न' पुस्तक में संकलित।